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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
33.गोवर्धन-धारण-लीला
फिर कहते हैं, “भगवान मैं मूढ़ हूँ। मैंने आपके प्रभाव को नहीं जाना। मैं अभिमान करने लग गया। मुझे माफ कर दीजिए और ऐसा वरदान दीजिए कि असत् मार्ग में मेरी बुद्धि कभी भी न जाए।” भगवान ने कहा- चलो ठीक है, अब तुम्हारा अभिमान नष्ट हो गया है। आगे इस प्रकार से अभिमान नहीं करना। तुमको जो काम दिया गया है उसे ठीक तरह से करते रहो। इतने में कामधेनु भी वहाँ भगवान के पास आयीं। कामधेनु ने कहा, “भगवान समय-समय पर आपने ही हमारी रक्षा की है। हमारे वंश को दावाग्नि से, ब्रह्मा जी से और इन्द्र के प्रकोप से आपने ही बचाया है। अब आप ही हमारे स्वामी हैं। आप ही हमारे इन्द्र हैं। हम आपका अभिषेक करना चाहती हैं।” भगवान ने कहा, “ठीक है।” कामधेनु ने सारी सामग्री इकट्ठी कर ली, और भगवान का अभिषेक किया।
फिर इन्द्र ने भी सारे देवऋषियों सहित, आकाश-गंगा से भगवान का अभिषेक किया और तब उन्हें ‘गोविन्द’ नाम से सम्बोधित किया।
इस प्रकार इन्द्र का अभिमान नष्ट कर भगवान ने उन्हें भी जीत लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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