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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
22.ब्रह्माजी का मोह
भगवान श्रीकृष्ण ने छोटा-सा पीताम्बर पहना हुआ है, ‘जठरपटयोः’ कमर में वेणु खोंसकर रखा है ‘शृंगवेत्रे च कक्षे’ और अपनी सींग तथा बेंत को बगल में दबा लिया है, ‘वामे पाणौ मसृणकवलं’ बायें हाथ में दही भात लिए बैठे हैं ‘तत्फलान्यंगुलीषु’ नींबू, आँवला, अदरक आदि का अचार अंगुलियों में दबा रखा है। ‘तिष्ठन् मध्ये स्वपरिसुहृदो हासयन् नर्मभिः स्वैः’ और बीच में बैठकर सबको हास्यपूर्ण बातें, चुटकुले आदि सुनाते हुए सभी ग्वानल बालों को हँसा रहे हैं। ‘स्वर्गे लोके मिषति’ स्वर्ग के देवता भी इस अद्भुत लीला को देखकर आश्चर्यचकित हो रहे थे कि समस्त यज्ञों के भोक्ता स्वयं भगवान जो हमारे लिए किए जाने वाले यज्ञों में जल्दी नहीं आते, वे ही यहाँ पर इन बच्चों के साथ हँसी-मजाक करते हुए खा रहे हैं। इस प्रकार आनन्द से भरे उस भोज में सभी गोपबाल भगवान के साथ बैठकर हँस-बोल रहे थे, खा ही रहे थे कि इतने में ध्यान भगवान को छोड़कर बछड़ों की ओर चला गया। हरी-हरी घास के लोभी में वे दूर जंगल में निकल गये थे। गोपबाल कहने लगे- अरे! हमारे बछड़े किधर गये? यानी इनका ध्यान भगवान से हट गया। बछड़े या गोवत्स को तथा गाय को ‘गो’ भी कहते हैं। तो यहाँ बछड़े माने इन्द्रियाँ। हमारी इन्द्रियाँ भी कभी-कभी भगवान को छोड़कर चरने चली जाती है। ये बछड़े अब तक तो भगवान के आसपास थे। उनके हरी-हरी घास दिखाई दी तो वे भगवान को छोड़कर हरी घास में चले गए। इसी प्रकार, हमारी इन्द्रियाँ भी कहीं-कहीं जाती रहती है। कहीं टी.वी. पर कोई अच्छा धारावाहिक (serial) आ रहा हो, तो बोले आज भागवत के प्रवचन में नहीं जाएँगे। ऐसा होता है न? आज कथा में नहीं जाएँगे, ज्ञान रज्ञ में नहीं जाएँगे, ऐसा हो जाता है। जैसे बछड़ों को घास दिखाई दी तो वे वहाँ चले गये, वैसे ही हमारी इन्द्रियाँ भी जाती रहती हैं। और अब ये गोपबाल क्या हैं? किसके प्रतीक हैं? ये गायों और वत्सों की- इन्द्रियों की सुरक्षा करने वाले हैं, वे भी इन्द्रियों के पीछे-पीछे जाने लगे।भगवान ने कहा, लो! मैं यहाँ बैठा हूँ और पहले इन्द्रियाँ गयीं, फिर उनके पीछे-पीछे गोपबाल यानी मन भी जा रहा है। यदि इन्द्रियाँ गो हैं, तो गोपबाल मन है। जब गोपबालों का ध्यान बछड़ों की ओर गया तो वे उन्हें ढूँढने के लिए जाने लगे। भगवान सोचते हैं इनको सम्हालना चाहिए, ये भी उद्विग्न होकर जा रहें हैं। भगवान ने ग्वालबालों से कहा, “तुम लोग यहीं भोजन करते रहो, मैं शीघ्र ही बछड़ों को ढूँढ लाता हूँ।” ऐसा कहकर भगवान चल पड़े। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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