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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
दशम स्कन्ध
सम्पूर्ण भागवत महापुराण में दशम स्कन्ध सबसे बड़ा है, इसमें नब्बे अध्याय हैं। दूसरे स्कन्धों में ज्यादा-से-ज्यादा तैंतीस अध्याय हैं। इस स्कन्ध में दो भाग हैं- पूर्वार्ध और उत्तरार्ध। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण का चरित्र पूरी तरह से गाया गया है। दशम स्कन्ध के विषय में मतभेद हैं कि यहाँ निरोध बताया गया है या आश्रय। वैसे तो क्रम बताया गया है- निरोधो-मुक्तिः-आश्रयः। तद् अनुरूप यह निरोध स्कन्ध है। निरोध का अर्थ होता है प्रलय-संहार। यहाँ भगवान ने इतने असुरों का संहार किया कि उसे देखकर लगता है यह निरोध लीला भी है। इसलिए इस स्कन्ध को निरोध स्कन्ध भी कहते हैं। लेकिन, श्रीधर स्वामी जी इसको आश्रय स्कन्ध मानते हैं। क्योंकि भगवान ही आश्रय हैं। और ‘कृष्णस्तु भगवान स्वयं’[1]श्रीकृष्ण स्वयं भगवान ही हैं और वे ही यहाँ पर प्रकट हुये हैं। अतः श्रीकृष्ण सम्पूर्ण जगत के आश्रय एवं द्रष्टा हैं। इसलिए यह भी कह सकते हैं कि यहाँ आश्रय तत्त्व बताया गया है। श्रीधर स्वामी जी के अनुसार दशम स्कन्ध में आश्रय, एकादश स्कन्ध में मुक्ति, और बारहवें स्कन्ध में निरोध बताया गया है। ‘निरोध’ का अर्थ यदि प्रलय मानें, तो प्रलय का विस्तृत वर्णन बारहवें स्कन्ध में ही किया गया है। जो भी हो, हम पहले ही देख चुके हैं कि ये जितने विषय हैं, वे वास्तव में तो एक ही हैं। अतः निरोध कहें या आश्रय बात एक ही है, वह है तो भगवान की ही लीला। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.3.28
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