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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
11.वामन-अवतार
यज्ञोपवीत आ गया, मेखला आ गई। हाथ में दण्ड आ गया। अभी वे नग्न थे, क्योंकि छोटे-से थे। माता ने उनको लंगोटी दे दी और कौपिन भी ढाँक दिया। अब वटु पूरे तैयार हैं ‘द्यौश्छत्रं जगतः पतेः’ और आकाश के अभिमानी देवता ने उनके हाथ में छत्री दे दी। एक हाथ में दण्ड है, एक हाथ में छाता। ‘कमण्डलुं वेदगर्भः’ ब्रह्मा जी ने कमण्डलु दे दिया। सप्तऋषियों ने कुशा दे दी। सरस्वती जी आईं और-
उन्होंने इनके गले में अक्षमाला डाल दी। एक-एक करके उनका श्रृंगार पूर्ण हो रहा है।
यक्षराज ने उनको भिक्षापात्र दे दिया और स्वयं भगवती पार्वती जी ने उन्हें पहली भिक्षा दे दी।
सब प्रकार से सुसज्जित ब्रह्मचारी के रूप में भगवान का ब्रह्मवर्चस् कुछ इस प्रकार से चमक रहा है कि सूर्य का तेज भी उनके सामने फीका पड़ रहा है। बोले-राजा बलि यज्ञ कर रहे हैं। अब मैं उनके पास जाता हूँ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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