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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.भगवान हरि के द्वारा गजेन्द्र की मुक्ति
भगवान सब कुछ छोड़कर दौड़ पड़े। गरुड़ जी उनके वाहन हैं। भगवान ने जल्दी से ले जाना है ऐसा सोचकर गरुड़ जी सामने आते हैं। परन्तु गरुड़ जी जब भगवान को ले कर जाने लगे तो भगवान को लगा गरुड़ भी बहुत धीरे-धीरे उड़ रहा है। उन्होंने गरुड़ को भी छोड़ दिया और मन की गति से गजेन्द्र के पास पहुँच गये। देखो, कैसी विलक्षण बात है? हमें जल्दी-से कहीं जाना होता है तो हम वाहन लेते हैं। और भगवान को जल्दी जाना होता है तो वे वाहन छोड़ देते हैं। कैसी गति होगी उनकी? तो भगवान वहाँ पर दौड़ पड़े और जाकर एक क्षण का भी विलंब किए बिना ही उन्होंने अपने चक्र से उस मगरमच्छ को काट डाला। ध्यान में रखना, भगवान जिसको मारते हैं, उसका उद्धार हो जाता है। उस मगरमच्छ को मारा, उसका भी उद्धार हो गया। बड़े आश्चर्य की बात है कि गजेन्द्र का उद्धार करने से पहले भगवान ने मगरमच्छ का उद्धार कर दिया। ऐसा क्यों? क्योंकि उस मगरमच्छ ने भक्त का पैर पकड़ा था। यह बड़े रहस्य की बात है, इसे हम जल्दी से समझ नहीं पाते। जो भक्त की शरण में जाता है, भगवान केवल उसकी रक्षा ही नहीं करते हैं, उसका तो उद्धार ही कर देते हैं। यह मगरमच्छ पूर्व जन्म में ‘हूहू’ नाम का गन्धर्व था। अब उसको अपना पूर्व देह प्राप्त हो गया। ध्यान में रखना, गजेन्द्र अब स्वयं को केवल मगरमच्छ से छुड़ाने के लिये भगवान से नहीं कह रहा था। अब तो वह संसार के बन्धन से छुड़ाने की बात कह रहा था। हमारी स्थिति भी गजेन्द्र जैसी ही है। हमें अपनी शक्ति का बड़ा अभिमान होता है। हमारे आस-पास जो लोग घूमते रहते हैं, उन पर भी हमें बड़ा भरोसा होता है कि ये हमें बचा लेंगे। देखो, कभी अकेले कहीं दूसरे गाँव या शहर में जाना पड़ता है तो हमें लगता है वहाँ तो हमारा अपना कोई नहीं है। अरे, तुम्हें अपने लोगों पर इतना भरोसा है? हमें लगता है समय पर वे सब लोग हमारा साथ देंगे। दूसरी बात, विषय सुख में आसक्त इन्द्रियों के कारण ही ‘नीर पिबन हेतु गयो’ हम लोग भी सरोवर में जाते हैं, पानी पीने के लिये! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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