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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.धुंधुकारी का पतन व उद्धार
एक दिन राजा के लोग इसको अवश्य पकड़ेंगे, तब हमारी भी मौत हो जाएगी। अतः अब इसको मार डालते हैं।’ ऐसा सोचकर उन्होंने उसे रस्सी से बाँधा और उसका गला दबाया, फिर भी वह मरा नहीं, तब उसके मुँह में जलते हुए अँगारे डालकर उसको मार डाला। जब आस-पास वालों ने पूछा कि धुंधुकारी कहाँ गया तो वे बोंली- वह धन कमाने के लिए किसी दूसरे देश में गया है। दूसरे ही दिन वे सब वहाँ से चली गयीं। इस बीच गोकर्ण यात्रा करने के लिए चले गये थे। जब उनको अपने भाई की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने गया आदि पवित्र क्षेत्रों में श्राद्धकर्म किये और घूमते-घामते अपने गाँव में वापस आ गए। रात में जब वे अपने आँगन में सो रहे थे तब वहाँ एक भयंकर दृश्य देखा। एक बड़ा ही भयंकर प्राणी था जो कभी बकरे की शक्ल वाला तो भैंसे की शक्ल वाला, कभी गन्धर्व की तो कभी देवता की आकृति वाला हो जाता था। गोकर्ण सोचने लगे कि यह कौन है? भयानक प्राणी अथवा कोई प्रेतात्मा लगता है। बोले- तुम कौन हो? लेकिन वह उत्तर नहीं दे पा रहा था। गोकर्ण घबराये नहीं। उन्होंने उसके ऊपर जल छिड़का तो उसमें बोलने की शक्ति आ गयी। बोला- मैं तुम्हारा भाई धुंधुकारी हूँ। अपने घोर कर्मों के फलस्वरूप मुझे यह प्रेतयोनि प्राप्त हो गई है। गोकर्ण ने कहा, ‘‘परन्तु मैंने तो तेरी मुक्ति के लिए बहुत से श्राद्ध किये हैं। क्या तेरी मुक्ति नही हुई?’’ धुंधुकारी कहता है कि मैंने इतने पाप किये हैं कि तुम ऐसे हजारों श्राद्ध करोगे तो भी मेरी मुक्ति नहीं होगी। गोकर्ण बोले, ‘‘तो अब मैं क्या करूँ’’ वह कहता है, ‘‘मुझे नहीं मालूम, लेकिन तुम कुछ उपाय करो।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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