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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.अजामिलोपाख्यान
हमें तो लगता है कि आप ही दण्ड देने वाले हैं। आपको कोई पूछने वाला नहीं है। यदि आपके अतिरिक्त और भी कई शासक हो जाएँगे, तो फिर कोई नियम नहीं रह जाएगा। एक दण्ड देगा दूसरा क्षमा कर देगा। उससे व्यवस्था नहीं रहेगी। जो दण्ड दे, वही क्षमा करे यह बात तो समझ में आती है। तब यमराज ने पूछा क्यों, क्या हो गया? बोले - हमको भगाया गया है। आपने हमें भेजा था अजामिल को लाने के लिए। जब हमने उसे पकड़ा तो वह नारायण-नारायण बोलने लगा। तब न जाने कहाँ से, बड़े सुंदर चतुर्भुज व्यक्ति वहाँ आ गए और उन्होंने हमें रोका। ऐसी बात सुनते ही धर्मराज भाव-विभार हो गए। धर्मराज बड़े भागवत हैं, भगवान के भक्त हैं। तो वे भगवान की भक्ति में मग्न हो गए। फिर संभलकर बोले - तुमने गलत किया। जिसने अन्त में भगवान का नाम ले लिया, उसके ऊपर मेरा वश नहीं चलता है।
जिनकी जीभ कभी भगवान का नाम नहीं लेती, जिनका मन कभी भगवान का स्मरण नहीं करता, जिनका मस्तक एक बार भी भगवान श्री कृष्ण के सामने नहीं झुकता, ऐसे लोगों को तुम पकड़कर ले आओ। शेष लोग परम धर्म का पालन करने वाले होने के कारण उन पर न तो हमारा प्रभाव चलता है न ही उन पर हमारा वश है। इस भागवत धर्म के रहस्य को स्वायम्भुव मनु, प्रह्लाद, नारद, शुंभ, सनत्कुमार, कपिल, जनक, भीष्म, बलि, वेदव्यासजी आदि कुछ ही लोग जानते हैं। तो यह नाम की महिमा यहाँ बताई गई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 6.3.29
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