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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.अजामिलोपाख्यान
आप ही बताइये। आप जो बताएँगे वही नाम रख देंगे। उन्होंने कहा - इसका नाम नारायण रखो। देखो संत की कृपा। बोले कम से कम इसको बुलाएँगे तो इनके मुँह से नारायण नाम तो निकलेगा। नारायण नाम लेने की ऐसी महिमा है किसी भी कारण से नाम लें तो भी पुण्य होता है। अब वे तो चले गए। अजामिल आया, उसको सारा वृत्तांत पता चला। वह अपने बच्चे को नारायण-नारायण कहने लगा। उस बच्चे में उसकी बड़ी आसक्ति हो गई। अब अजामिल अट्ठासी साल का हो गया था। मरण शय्या पर पड़ा था। यमदूत उसको लने के लिए आए। और जब यमदूत आते हैं तो जो भी पाप-कर्म किए हों, वे सब-के-सब दिखाई देने लगते हैं। घबरा कर अजामिल ने पास खेल रहे अपने बच्चे नारायण को पुकारा। तब, अजामिल को अभी यमदूतों ने पकड़ा ही था कि इतने में हरिदास जो भगवान के ही समान रूप वाले होते हैं, वे भी वहाँ पहुँच गए। उन्होंने यमदूतों से कहा - छोड़ो इसको। यमराज के दूतों ने सोचा ये कौन लोग आ गए हैं? उनको मालूम ही नहीं था कि ये कौन लोग हैं। उन्होंने पूछा - तुम कौन हो? तो हरिदासों ने कहा - पहले तुम कौन हो यह बताओ। बोले - हम यमदूत हैं। इसके प्राण लेने के लिए आए हैं। आप हमें अपने कर्तव्य कर्म से क्यों रोकते हैं? यह तो बड़ा पापी आदमी है। हमें इसको लेकर जाना है। विष्णु दूतों ने कहा, ”देखो, तुम बड़ी धर्म-कर्म की बात करते हो, धर्म किसे कहते हैं, जरा बताओ तो?“ उन्होंने कहा - जो वेदों के द्वारा बताया गया है वह धर्म है। उसमें यह बताया गया है कि इस देह को धारण करने वाला एक जीव है जो मन, बुद्धि तथा इन्द्रियों सहित रहता है। वह अलग-अलग प्रकार के कर्म करता है। वह जिस प्रकार के कर्म करता है उसी के अनुरूप भिन्न-भिन्न प्रकार की योनियों को (गति को) प्राप्त होता है। उसे अपने कर्मानुरूप फल भोगना पड़ता है। यह जो आदमी है ‘अयं हि श्रुतसंपन्नः’ यह अच्छा पढ़ा-लिखा ज्ञानी था। यहाँ ज्ञानी यानी पढ़ा लिखा। लेकिन गलत संगत में पड़कर यह पापी हो गया और पाप की गति नरक ही है। इसलिए हम इसको वहाँ ले जा रहे हैं। सीधी-सी बात है, इसने वेदों में बताये हुए धर्म का पालन नहीं किया। इसने धर्म को छोड़ दिया था। कोई सही कर्म करता नहीं था। अतः हम इसको लेकर जा रहे हैं। विष्णु दूतों ने कहा -
तुम लोग, जिनका काम ही धर्म का पालन करना और करवाना है, वे ही अधर्म करने लग जाएँ तो बेचारी प्रजा कहाँ जाएगी? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 6.2.2
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