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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
षष्ठ स्कन्ध
वे कहते हैं - इतना प्रयत्न तो मुझसे होने वाला नहीं है। सरल-सी बात तो यह है कि सारे पाप और पुण्यों के परे भगवान हैं। मैं तो उन भगवान की शरण में जाता हूँ। इस प्रकार वे भगवत्परायण हो जाते हैं।
यहाँ कहते हैं, कृष्णार्पित हो जाने अथवा भगवान का नाम लेकर अपने आपको उनके प्रति अर्पित कर देने के समान पाप को दूर करने का दूसरा साधन नहीं है। उनके पाप हमेशा के लिए, जड़-सहित दूर हो जाते हैं। ऐसा किसी और साधन से नहीं होता। किसी ने चाहे जितने पाप-कर्म क्यों न किए हों, लेकिन यदि वह भगवन्नाम का आश्रय ले लेता है, तो उसे और कुछ करना नहीं पड़ता। यहाँ इसका एक दृष्टांत भी दिया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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