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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.ध्रुव को नारद जी का उपदेश
अब वे जिस पैर पर खड़े थे उस ओर उनका वजन बढ़ जाने से पृथ्वी भी उस ओर झुक गई। पूरे ब्रह्माण्ड की स्थिति बड़ी विचित्र हो गई। तब सारे देवता घबरा कर भगवान श्री हरि के पास पहुँचते हैं और कहते हैं - ‘नैवं विदामः’ हमारी समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा है? हमारा श्वास रुक रहा है, हम व्याकुल हो रहे हैं। आप कृपा करके कुछ कीजिए! भगवान ने कहा -
बात यह है कि उत्तानपाद के बालक ने अपना पूरा मन और प्राण मुझमें लगा दिया है और इसलिए सारे ब्रह्माण्ड की स्थिति ऐसी हो गयी है। उसके पास जाकर अब मैं उसे तप से निवृत्त करके घर भेजूँगा। उसे तप करते-करते छः महीने हो रहे हैं। अब देखो, यहाँ हमें ऐसा भी लग सकता है कि देवताओं ने कहा इसलिए भगवान ध्रुव के पास जा रहे हैं। परन्तु ऐसी बात नहीं है। यहाँ देखो मैत्रेय ऋषि क्या कहते हैं -
कहते हैं ‘भक्त दिदृक्षया’ भगवान से बैठा नहीं जा रहा था। उनको लग रहा था कि कब मैं वहाँ पर जाऊँ और अपने भक्त को देखूँ। ‘दर्शन देने के लिये’ ऐसा नहीं कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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