विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.नारद जी की सनत्कुमारों से भेंट
एक शास्त्र में तो यहाँ तक कहा गया कि वे पशु से भी गये बीते हैं। बोले -एक और अन्तर यह है कि पशु घास खाते हैं, और आदमी घास नहीं खाता। वह घास नहीं चरता, यह भी पशुओं का बड़ा भाग्य है। नहीं तो पशुओं के लिए घास भी बाकी नहीं बचती। ऐसी बात कही गयी है। इसका अर्थ यह है कि पहले हम मनुष्य जन्म की दुर्लभता को समझें, और फिर उसको श्रेष्ठ बनाएँ तो यहाँ कहना यही चाहते हैं कि यह भागवत कथा बड़ी दुर्लभ है। अब, इस कथा को कितने दिनों में सुनें? किस दिन से आरंभ करें? बोले- ‘दिनानां नियमों नास्ति। कोई पूछे कि मेरे पास मिठाई है। कौन से मुहुर्त में खाना शुरु करुँ? तो, इसमें मुहुर्त क्या देखना? तुम्हारे हाथ में आयी है तो उसे खाना शुरु करो। अच्छा कहाँ से शुरु करुँ? बोले, मिठाई है, कहीं से भी शुरु करो। इधर से करो या उधर से, वह तो सब ओर से मीठी ही लगने वाली है। लेकिन भागवत कथा सत्य, ब्रह्मचर्य इत्यादि के साथ सुननी चाहिए। पूरे भागवत का एक-एक शब्द विस्तार से नहीं सुन सकते तो सात दिन में भागवत कथा सुननी ही चाहिए। बड़े-बड़े साधनों से भी जिन फलों की प्राप्ति नहीं होती, वे सब सप्ताह श्रवण से ही प्राप्त हो जाते हैं।
शौनक ऋषि सूत जी से पूछते हैं कि जिस भागवत की आप इतनी प्रशंसा करते हैं, उसमें इतनी शक्ति कहाँ से आ गयी? सूत जी बोले- भगवान् श्रीकृष्ण जब अपना अवतार समाप्त करके यहाँ से जा रहे थे, तब उद्धवजी उनके पास जाकर कहने लगे, ‘‘भगवान् आप यहाँ से चले जाएँगे, यहाँ पर कलियुग का प्रवेश हो जाएगा और सारे लोग दुःखी हो जाएँगे, उनके उद्धार का कोई शक्तिशाली साधन भी तो होना चाहिए।’’ भगवान् भी सोचने लगे। बोले बात तो तुम ठीक कहते हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा.मा. 3.53
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज