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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.दिति की याचना
अलंपट- यानी वह विषयों में जरा भी आसक्त नहीं होगा। चरित्रवान होगा और गुणों का आगार होगा। दूसरों की उन्नति देखकर तो प्रसन्न होगा, लेकिन दूसरों का दुःख देखकर दुःखी होगा। जगत में उसका कोई शत्रु नहीं होगा। वह लोगों का शोक दूर करने वाला होगा। चंद्रमा के समान वह चमकता भी रहेगा, और साथ ही सौम्य और शीतल भी होगा अर्थात सबके ताप को दूर करने वाला होगा। इतनी विशेषताओं से सम्पन्न वह प्रह्लाद महाभागवत होगा। अब दिति बड़ी प्रसन्न हो गई, क्योंकि एक महाभागवत घर में आता है, तो वह सारे कुल का उद्धार कर देता है। इक्कीस पीढ़ियों का उद्धार कर देता है। अब दिति ने गर्भ धारण किया। उसके गर्भ में दो पुत्र थे। गर्भावस्था में ही उनका इतना अधिक तेज था कि सारे देवता लोग घबराने लगे, जबकि अभी उनका जन्म भी नहीं हुआ था। पहले से ही अपशकुन दिखाई देने लगे। देवताओं का मन उद्धिग्न होने लगा, व्याकुल होने लगा, उन्हें डर भी लगने लगा। अतः सब देवता ब्रह्माजी के पास जाकर पूछते हैं, ‘‘भगवन जगत में यह क्या हो रहा है, हमारी समझ में नहीं आ रहा है। हम तो व्याकुल हुए जा रहे हैं। इसका क्या कारण है?, ‘‘ब्रह्माजी हँसते हैं। कहते हैं- इसका कारण यही है क दिति के गर्भ में दो बच्चे हैं। वे दोनों महाभयंकर असुर बनने वाले हैं। वे तप करके मुझसे ही वरदान प्राप्त करेंगे। इसमें मैं भी कुछ नहीं कर सकता। अब इस कथा का जो विस्तृत वर्णन किया गया है, उसे देखेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 3.14.48
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