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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.परीक्षित के प्रश्न
आप धीरे से सृष्टि ध्यान हटा कर, उस द्रष्टा मे लगाइए जिसकी दृष्टि में यह सब है। वर्णन आता है कि ब्रह्माजी जब प्रकट हुए, तो वे चारों ओर देखने लगे। उनकी समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूँ। कभी-कभी हमारे साथ भी ऐसा ही हो जाता है। मैं क्या करुँ, कुछ समझ में नहीं आता। उनको भी, मैं कौन हूँ, क्या हूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तब उनको एक आवाज सुनायी पड़ी, और आवाज ने कहा- तप, तप, तप! वे देखने लगे कि आवाज कहाँ से आयी तो कुछ दिखाई नहीं दिया लेकिन इतना समझ में आ गया कि मझे तप करने को कहा गया है। ‘तप’ शब्द का अर्थ एक पाँव पर खड़े रहना इत्यादि ही नहीं है। यहाँ ‘तप’ का अर्थ है - आलोचना, अर्थात एकाग्र चिन्तन। देखो, कभी-कभी हम सबेरे उठते हैं, तो ध्यान में नहीं आता है कि मैं कहाँ हूँ, मुझे क्या करना है। तब, हम सब तप ही तो करते हैं। पहले-पहले, मै जब प्रचार कार्य के लिए निरन्तर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता रहता था, तब सात दिन कहीं, तो अगले सात दिन कहीं और रहना पड़ता था। कभी-कभी पता ही नहीं चलता था कि मैं भोपाल में हूँ या कानपूर में। थोड़ा तप कर लेने के बाद पता चल जाता था कि मैं कानपुर में ही हूँ। जब तप करने के लिए कहा गया, तो ब्रह्माजी एक हजार साल तक तप करते रहे। तब नारायण भगवान उनके सामने प्रकट हुए। उनके अत्यंत सुन्दर रूप को देखकर ब्रह्माजी बहुत प्रसन्न होते हैं और भगवान की स्तुति करते हैं। ब्रह्माजी बोले- आपका दर्शन हुआ। अब मुझे क्या चाह हो सकती है। लेकिन आपका जो पर-अपर, निर्गुण-सगुण, परापर स्वरूप है, वह मुझे समझाइये। यह भी समझाइये कि आप किस प्रकार से सृष्टि रचते हैं? आगे मैं कि प्रकार से सृष्टि की रचना करूँ, जिससे कि मैं थकूँ नहीं, और आपको भूलूँ भी नहीं। सबसे बड़ी बात तो यही है। उसे मैं किस प्रकार से करूँ? इसीलिए कहते हैं शादी करके देखनी चाहिए, मकान बनाकर देखना चाहिए। सब भजन-पूजन समाप्त हो जाता है। सिमेंट की बोरियाँ गिनते रह जाते हैं। जप-नामस्मरण कुछ नहीं हो पाता। अतः, काम भी करते रहें और भगवान का स्मरण भी बना रहे, यह बड़ा कठिन कार्य है। रजोगुण सब भुला देता है। कहने का अर्थ है, भगवान का स्मरण बना रहे, यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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