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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
24.भगवान की विभूतियाँ
उद्धव जी कहते हैं, ”भगवान आप बार-बार कहते हैं कि सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त आप स्वयं हैं। सबके स्वामी भी आप ही हैं। यह तो ठीक है, लेकिन हमारा मन पूर्णतः आपके स्वरूप में स्थित नहीं हो पाता। हम आपका ध्यान करना तो चाहते हैं, लेकिन यह सारा जगत आपके जिस विराट स्वरूप में स्थित है, उसका ध्यान हम नहीं कर पाते। अतः आप अपनी कुछ ऐसी विभूतियों का वर्णन कीजिए जिनका हम ध्यान कर सकें।“ ‘विभूति’ का अर्थ होता है भगवान की अभिव्यक्ति। भगवान अलग-अलग रूपों में प्रकट होते हैं। यद्यपि पूरा जगत ही भगवान का एक रूप है, तथापि उसमें कई चीजें ऐसी हैं, जिनमें भगवान की विशालता और व्यापकता दृष्टिगोचर होती है। जहाँ-जहाँ तेज की अधिकता होती है, वहाँ भगवान की उपस्थिति सरलता से पहचानी जा सकती है। जैसे, सूर्य का तेज देखकर तत्क्षण हाथ जोड़ने का मन करता है, हिमालय के ऊँचे शिखरों के समक्ष स्वतः ही मस्तक झुक जाता है। वैसे लोग प्रायः अपने आपको बड़ा आदमी समझते रहते हैं। लेकिन, यदि किनारे पर खड़े होकर समुद्र को लहराते हुऐ देखें अथवा समुद्र के बीचों-बीच जाकर देखें, तो ज्ञान होता है कि हम कितने छोटे-से जीव हैं। और तब समुद्र की विशालता व गम्भीरता में अकस्मात भगवद दर्शन होने लगते हैं। समुद्र स्नान करते समय तो बड़ा ही अच्छा लगता है। समुद्र स्नान करके देखना चाहिए। जब लहरें हमारे ऊपर आती हैं, तो लगता है जैसे माता-पिता हमें बाहों में बाँध रहे हैं, आलिंगन दे रहे हैं। गंगा जी में स्नान करने जाएँ, तो लगता है जैसे माँ की गोद में खेल रहे हैं। वहाँ भगवान के अस्तित्व का तीव्र भान होता है। अतः ये भगवान की विभूतियाँ हैं। जैसे, कोई मुम्बई नगरी देखने जाता है तो उसे क्या दिखाते हैं? उसे तो मुम्बई के प्रसिद्ध स्थल, जैसे गेटवे आँफ इण्डिया, ताजमहल होटल, हैंगिग-गार्डन आदि ही दिखाते हैं। ऐसा क्यों? इसलिए कि ये सब दर्शनीय स्थल, मुम्बई की विभूतियाँ हैं। उन्हें देख लिया तो जैसे मुम्बई देख लिया। ब्रह्माण्ड में जुगनू का प्रकाश भी भगवान का ही है। परन्तु उसमें भगवत्ता दिखाई नहीं देती है, सूर्य में दिखाई देती है। निर्गुण निराकार स्वरूप भगवान ही सभी रूपों में दिखाई दे रहे हैं। ध्यान के लिए उद्धव जी ने विभूतियों के बारे में पूछा तो भगवान को अर्जुन की याद आ गयी। भगवान कहते हैं - अरे उद्धव, महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन को मोह हुआ और उसने भी ऐसा ही प्रश्न किया था। तब मैंने देवता, नाग, गन्धर्व, किन्नर, मनुष्य, नदी, पर्वत आदि सबमें अपनी एक-एक विशेष विभूति का वर्णन किया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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