विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
44.कुब्जा पर कृपा
इस प्रकार भगवान मथुरा में सभी लोगों पर अपना प्रभाव डालते जा रहे हैं। पहले पहल उन्होंने रजक को मार दिया। मथुरा में लोग कहने लगे अरे! कंस के धोबी को मारने की हिम्मत किसने की? कंस के सेवक को एक ही तमाचे में मार दिया? तुरन्त ही समाचार फैल गया। मथुरा में कुब्जा नाम की एक कुबड़ी स्त्री रहती थी। वह कंस के यहाँ सैरन्ध्री का काम करती थी। कंस के लिए वह अंगराग चन्दन आदि ले जाती है और उसकी सेवा में रहती है। उसे देखकर भगवान ने सुंदरी कह कर उसे सम्बोधित किया और उससे चन्दन और अंगराग माँगा। प्रसन्न होकर उसने दे दिया। फिर भगवान को पता नहीं क्या सूझा कि वे उसके निकट गए, उसकी ठोड़ी को पकड़ा, अपने पैरों को उसके पैरों पर रखकर जैसे ही उसे ऊँचा किया तो वह सीधी हो गयी। सुन्दरी तो वह थी, अब वह सर्वांग सुन्दरी हो गई। लेकिन उस कब्जा का मन बहुत शुद्ध नहीं था। न ही उसके मन में कोई लज्जा संकोच ही थे। वहीं बीच रास्ते में ही उसने श्रीकृष्ण का उत्तरीय पकड़ लिया। बोली -मेरे साथ मेरे घर चलो। भगवान भी क्या कम है? कहते हैं- अभी तुम जाओ, तुम्हारे घर मैं बाद में आऊँगा। भगवान ने उसको भी वचन दे दिया। आगे वे उसे पूरा भी करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |