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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
21.अघासुर का उद्धार
भगवान क्या उसे जानते नहीं? अन्दर जाकर वे ऐसे बढ़ने लगे कि उसके गले तक पहुँच गए। उसका श्वास पूरी तरह से रुक गया। वह व्याकुल हो गया। अन्ततः उसके प्राण ब्रह्मरन्ध्र से निकल गए। तब भगवान ने अपनी अमृतमयी दृष्टि से सभी ग्वालबाल तथा बछड़ों को जीवित किया और अपने साथ सबको बाहर ले आये। बोले-तुम लोग चाहे जहाँ प्रवेश करने के पहले जरा देखा तो करो कि कहाँ प्रवेश कर रहे हो! हम लोग भी ऐसा ही करते हैं। पाप मुँह खोल कर बैठा रहता है। ‘यह क्या है’ कहते हुए बस घुस जाते हैं उसके अन्दर। अन्दर घुस जाने के बाद पाप मुँह बंद कर लेता है और फिर हम पाप कर्म करते चले जाते हैं। इस बात को पहचानना आना चाहिये कि वह (पाप) मुँह खोलकर बैठा है, हमको आमंत्रण दे रहा है। क्या इसके अन्दर जाना चाहिये? हमें जाना कहाँ है, यह पहले अच्छी तरह से सोच लेना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.12.31
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