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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.नृसिंह-अवतार
अब सारे असुर बालक जब प्रह्लाद के पक्ष में हो गये, तो हिरण्यकशिपु को डर लगा। जो अपने को बड़ा शक्तिशाली समझता था, वह एक बच्चे से डरने लगा। देखो, ऐसी होती है अध्यात्म की शक्ति। जगह-जगह वर्णन आता है कि छोटा-सा बालक ध्रुव है,यह छोटा-सा बालक प्रह्लाद है। प्रह्लाद सबसे प्रिय है। इसलिए भागवतों में प्रह्लाद का नाम सबसे पहले है प्रह्लाद, नारद, पुण्डरीक इस प्रकार। हिरण्यकशिपु को जब पता लगा कि सारे असुर बालक प्रह्लाद के पक्ष में हो गए हैं, तो उसने प्रह्लाद को बुलाया। और क्रोधित होकर कहने लगा -
तू बहुत दुर्विनीत अभिमानी हो गया है। स्तब्ध हो गया है। मूढ़, आज तुझे मैं यमालय भेजकर रहूँगा।
मेरा नाम सुनकर तीनों लोक थर-थर काँपने लगते हैं। तू किसके बल से इस कदर निडर होकर मेरे सामने खड़ा है? यह तेरा अपना बल तो हो नहीं सकता। तू इतना छोटा-सा है। प्रह्लाद की नम्रता देखो, हाथ जोड़कर खड़े हैं। कहते हैं - राजन, आप पूछते हैं किसके बल से मैं यहाँ खड़ा हूँ? क्या दुनिया में बल के, शक्ति के स्रोत पृथक्-पृथक् हैं? क्या कोई इस शक्ति से तो कोई किसी और शक्ति से जी रहा है? जिस बल से आप तीनों लोकों को डरा रहे हैं वह उसी का बल है। यद्यपि आप समझते हैं कि अपनी ही शक्ति से आप उन सब को डरा रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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