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आगे, [[श्रीकृष्ण]] चरित्र में आता है कि ब्रह्माजी जब बछड़ों को तथा ग्वाल-बालों को चुराकर ले गए, तब भगवान स्वयं ही बछड़े बन गए, स्वयं ही ग्वाल-बाल भी बन गए। भगवान को सृष्टि रचने के लिए पूर्व पदार्थों की आवश्यकता नहीं पड़ती। कहने का भाव यह है कि है कि ब्रह्माजी बिना पूर्व पदार्थों के सृष्टि नहीं बना सकते। लेकिन [[नारायण|नारायण भगवान]] तो ब्रह्माजी के भी स्वामी है। इसलिए ब्रह्माजी कहते हैं कि नारायण भगवान के तेज से ही मैं सृष्टि रचता हूँ। सारे-के-सारे लोग जिस माया से मोहित हो रहे हैं, वही माया डरती हुई भगवान के चरणों के पास खड़ी रहती है। उनकी माया को मेरे सहित रुद्र, वरुण, कुबेर आदि थोड़ा-थोड़ा जानते हैं। उनकी शक्ति से ही हम सब अपना-अपना काम करते रहते हैं। नारायण भगवान ही सर्वश्रेष्ठ हैं। | आगे, [[श्रीकृष्ण]] चरित्र में आता है कि ब्रह्माजी जब बछड़ों को तथा ग्वाल-बालों को चुराकर ले गए, तब भगवान स्वयं ही बछड़े बन गए, स्वयं ही ग्वाल-बाल भी बन गए। भगवान को सृष्टि रचने के लिए पूर्व पदार्थों की आवश्यकता नहीं पड़ती। कहने का भाव यह है कि है कि ब्रह्माजी बिना पूर्व पदार्थों के सृष्टि नहीं बना सकते। लेकिन [[नारायण|नारायण भगवान]] तो ब्रह्माजी के भी स्वामी है। इसलिए ब्रह्माजी कहते हैं कि नारायण भगवान के तेज से ही मैं सृष्टि रचता हूँ। सारे-के-सारे लोग जिस माया से मोहित हो रहे हैं, वही माया डरती हुई भगवान के चरणों के पास खड़ी रहती है। उनकी माया को मेरे सहित रुद्र, वरुण, कुबेर आदि थोड़ा-थोड़ा जानते हैं। उनकी शक्ति से ही हम सब अपना-अपना काम करते रहते हैं। नारायण भगवान ही सर्वश्रेष्ठ हैं। |
01:03, 28 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
8.भगवान नारायण तथा ब्रह्मा जी
अब नारायण भगवान और ब्रह्माजी - इनमें जो अन्तर है, उसे अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है। और फिर, ब्रह्माजी की सृष्टि में और हमारी सृष्टि में क्या अन्तर है, इसका वर्णन आगे आएगा। ब्रह्माजी सृष्टि तो बनाते हैं, परन्तु वे उसी सृष्टि को बना सकते हैं जिसके लिए पूर्व सामग्री उपलब्ध हो। पहले से जो जीव हैं और उन्होंने जो कर्म किये हैं, उन्हीं कर्मों के अनुसार ब्रह्माजी सृष्टि बनाते हैं। जब उपादान उनके पास हो तभी वे सृष्टि रच सकते हैं, नहीं हो तो वे सृष्टि नहीं बना सकते। लेकिन, नारायण भगवान को किसी जीव की आवश्यकता नहीं, उनके कर्मों की भी आवश्यकता नहीं और किसी पदार्थ की भी आवश्यकता नहीं। वे तो स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी को भी प्रकट करते हैं। आगे, श्रीकृष्ण चरित्र में आता है कि ब्रह्माजी जब बछड़ों को तथा ग्वाल-बालों को चुराकर ले गए, तब भगवान स्वयं ही बछड़े बन गए, स्वयं ही ग्वाल-बाल भी बन गए। भगवान को सृष्टि रचने के लिए पूर्व पदार्थों की आवश्यकता नहीं पड़ती। कहने का भाव यह है कि है कि ब्रह्माजी बिना पूर्व पदार्थों के सृष्टि नहीं बना सकते। लेकिन नारायण भगवान तो ब्रह्माजी के भी स्वामी है। इसलिए ब्रह्माजी कहते हैं कि नारायण भगवान के तेज से ही मैं सृष्टि रचता हूँ। सारे-के-सारे लोग जिस माया से मोहित हो रहे हैं, वही माया डरती हुई भगवान के चरणों के पास खड़ी रहती है। उनकी माया को मेरे सहित रुद्र, वरुण, कुबेर आदि थोड़ा-थोड़ा जानते हैं। उनकी शक्ति से ही हम सब अपना-अपना काम करते रहते हैं। नारायण भगवान ही सर्वश्रेष्ठ हैं। अब देखो, इस नारायण नाम का अर्थ है? नराणां अयनं- जो सारे जीवों के परमधाम हैं, स्वामी हैं, लक्ष्य हैं, उनको नारायण कहते है। ‘नार’ शब्द का अर्थ होता है पानी। पानी में जिनका स्थान है, अयन है, शयन है, निवास है, उनको नारायण कहते हैं। सारे जीवों की उत्पत्ति पानी की उस बूँद से ही तो होती है जिसको वीर्य कहते हैं। उसमें उनका निवास है। जो आदि वारि हैं, सारे जीवों के मूल कारण हैं, उनको नारायण कहते हैं। उन्हीं से सारे जीव प्रकट हुए हैं। सृष्टि प्रक्रिया भागवत में स्थान-स्थान पर प्राप्त होती है। जो भी कुछ इस समय स्थूल रूप में दिखाई दे रहा है, वह पहले सूक्षम रूप में प्रकट होता है और सूक्ष्म रूप में आने के पूर्व वह कारण अव्युक्त होता है। इतना सिद्धान्त समझ लेना चाहिए। ज्यादा सोचने की आवश्यकता नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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