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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.युधिष्ठिर का प्रश्न - नारद जी का समाधान
नारद जी ने कहा, भगवान तो ऐसे हैं कि -
कोई उनको स्नेह से याद कर रहा है, कि कामना से याद कर रहा है या शत्रु भाव से याद कर रहा है, यह भगवान नहीं देखते हैं। केवल यही देखते हैं कि वह मुझे याद कर रहा है। सच बात तो यह है कि जिससे हम द्वेष करते हैं, उसको जब याद करते हैं तो बड़ी तीव्रता से याद करते हैं। तन-मन से! मानो हमारा हर कोश, प्रत्येक सेल याद करता है।
यहाँ नारद जी युधिष्ठिर से कहते हैं - द्वेष से भगवान का स्मरण करने में जो तीव्रता होती है, वह प्रेम से स्मरण करने में नहीं होती। इसका अर्थ यह नहीं समझना कि सब को भगवान से द्वेष करना चाहिए। समझना यह है कि जिन्होंने द्वेष से भगवान को याद किया उनको भी भगवान ने मुक्त कर दिया, तो जो प्रेम से याद करते हैं उनके लिए क्या करेंगे? भगवान की समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ इसके लिए। एक प्रसिद्ध श्लोक है भागवत का-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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