विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
31.गोप-बालों द्वारा ब्राह्मणों से अन्न की याचना
फिर कहते हैं, “हमेशा अंग-संग होना ही आवश्यक नहीं होता। आपने मन से इच्छा की, मैंने उसे स्वीकार कर लिया। तुम्हारा मन मुझ में लग गया। यही बड़ी बात है। स्थूल दृष्टि से-शरीर से तुम उन्हीं के पास रहो।” देखो, इन ब्राह्मण पत्नियों में एक स्त्री ऐसी थी जो अन्य ब्राह्मण पत्नियों के साथ श्रीकृष्ण-बलराम जी के पास आना चाहती थी लेकिन उसके पति ने आने नहीं दिया। जबरदस्ती उसे रोक कर रखा।
तो उसने अपनी देह का ही त्याग कर दिया। कर्मबन्धन को ही तोड़ दिया। ये सारी घटनायें जब उन कर्मजड़ पण्डितों को, ब्राह्मणों को पता चलीं, तो वे स्वयं को धिक्कारने लगे कि अरे! स्वयं भगवान ने माँगा और हमने उन्हें कुछ दिया नहीं, ज्यों-के-त्यों बैठे रहे।
हमारी पत्नियाँ धन्य हैं, उन्होंने अपना मन भगवान में लगा दिया। वैसे, हम बड़े भाग्यशाली हैं कि हमको ऐसी पत्नियाँ मिलीं। ऐसा वे स्वयं अपने लिए कहने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |