प्रभा तिवारी (वार्ता | योगदान) ('<div class="bgsurdiv"> <h4 style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''श्रीमद्भागवत प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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− | हिरण्यकशिपु ने कहा - ‘व्यक्तं त्वं मर्तुकामोऽसि’<ref>7.8.12</ref> अब मुझे विश्वास होने लगा कि तू मरना चाहता है। ‘अतिमात्रं विकत्थसे’ क्योंकि अब तू तो सीमा को पार कर रहा है, मर्यादा का अतिक्रमण कर रहा है। छोटे मुँह बड़ी बात करता है। मेरा पुत्र होकर मुझे ही उपदेश देता है। अन्तकाल में तेरी बुद्धि विपरीत | + | [http://हिरण्यकशिपु हिरण्यकशिपु] ने कहा - ‘व्यक्तं त्वं मर्तुकामोऽसि’<ref>7.8.12</ref> अब मुझे विश्वास होने लगा कि तू मरना चाहता है। ‘अतिमात्रं विकत्थसे’ क्योंकि अब तू तो सीमा को पार कर रहा है, मर्यादा का अतिक्रमण कर रहा है। छोटे मुँह बड़ी बात करता है। मेरा पुत्र होकर मुझे ही उपदेश देता है। अन्तकाल में तेरी बुद्धि विपरीत होने लगी है। |
<poem style="text-align:center;">;यस्त्वया मन्दभाग्योक्तो मदन्यो जगदीश्वरः। | <poem style="text-align:center;">;यस्त्वया मन्दभाग्योक्तो मदन्यो जगदीश्वरः। | ||
;क्वासौ यदि स सर्वत्र कस्मात् स्तम्भे न दृश्यते।।<ref>7.8.13</ref></poem> | ;क्वासौ यदि स सर्वत्र कस्मात् स्तम्भे न दृश्यते।।<ref>7.8.13</ref></poem> | ||
− | तूने अभी जिस ईश्वर की बात की, मेरे अलावा वह कौन-सा ईश्वर है? किधर है? यदि सर्वत्र है तो इस स्तम्भ में क्यों नहीं दीखता? यदि तुम्हारी बात सत्य है तो इस स्तम्भ को मैं अभी तोड़ता हूँ और देखता हूँ कि तेरा भगवान कहाँ है? इस प्रकार दुर्वचन कहता हुआ क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु उस स्तम्भ को | + | तूने अभी जिस ईश्वर की बात की, मेरे अलावा वह कौन-सा ईश्वर है? किधर है? यदि सर्वत्र है तो इस स्तम्भ में क्यों नहीं दीखता? यदि तुम्हारी बात सत्य है तो इस स्तम्भ को मैं अभी तोड़ता हूँ और देखता हूँ कि तेरा भगवान कहाँ है? इस प्रकार दुर्वचन कहता हुआ क्रोधित होकर [[हिरण्यकशिपु]] उस स्तम्भ को तोड़ने के लिए जाता है। देखो, बिल्कुल उचित समय है, सायंकाल का समय और खम्भे के अन्दर भगवान विराजमान् हैं - |
<poem style="text-align:center;">;खड्गं प्रगृह्योत्पतितो वरासनात् | <poem style="text-align:center;">;खड्गं प्रगृह्योत्पतितो वरासनात् | ||
;स्तम्भं तताडातिबलः स्वमुष्टिना।।<ref>7.8.15</ref></poem> | ;स्तम्भं तताडातिबलः स्वमुष्टिना।।<ref>7.8.15</ref></poem> | ||
− | हिरण्यकशिपु एक हाथ में तलवार लेकर खम्भे की ओर दौड़ पड़ता है और उस खम्बे पर एक मुष्टिका का प्रहार करता है। किसी साधारण खम्भे के ऊपर कोई आघात करे तो उसमें से थोड़ी-सी आवाज आ सकती है, लेकिन वहाँ पर तो ऐसी आवाज हुई मानो पूरा ब्रह्माण्ड फट रहा हो। ‘येनाण्डयकटाहमस्फुटत्’ उस भयंकर आवाज को सुनकर हिरण्यकशिपु चौंककर पीछे की ओर आ गया। उसने सोचा खम्भे के ऊपर मारने से ऐसी आवाज तो नहीं हो सकती। | + | [[हिरण्यकशिपु]] एक हाथ में तलवार लेकर खम्भे की ओर दौड़ पड़ता है और उस खम्बे पर एक मुष्टिका का प्रहार करता है। किसी साधारण खम्भे के ऊपर कोई आघात करे तो उसमें से थोड़ी-सी आवाज आ सकती है, लेकिन वहाँ पर तो ऐसी आवाज हुई मानो पूरा [[ब्रह्माण्ड]] फट रहा हो। ‘येनाण्डयकटाहमस्फुटत्’ उस भयंकर आवाज को सुनकर हिरण्यकशिपु चौंककर पीछे की ओर आ गया। उसने सोचा खम्भे के ऊपर मारने से ऐसी आवाज तो नहीं हो सकती। |
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[[चित्र:Next.png|right|link=श्रीमद्भागवत प्रवचन -तेजोमयानन्द पृ. 298]] | [[चित्र:Next.png|right|link=श्रीमद्भागवत प्रवचन -तेजोमयानन्द पृ. 298]] |
12:25, 22 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.नृसिंह-अवतार
हिरण्यकशिपु ने कहा - ‘व्यक्तं त्वं मर्तुकामोऽसि’[1] अब मुझे विश्वास होने लगा कि तू मरना चाहता है। ‘अतिमात्रं विकत्थसे’ क्योंकि अब तू तो सीमा को पार कर रहा है, मर्यादा का अतिक्रमण कर रहा है। छोटे मुँह बड़ी बात करता है। मेरा पुत्र होकर मुझे ही उपदेश देता है। अन्तकाल में तेरी बुद्धि विपरीत होने लगी है।
तूने अभी जिस ईश्वर की बात की, मेरे अलावा वह कौन-सा ईश्वर है? किधर है? यदि सर्वत्र है तो इस स्तम्भ में क्यों नहीं दीखता? यदि तुम्हारी बात सत्य है तो इस स्तम्भ को मैं अभी तोड़ता हूँ और देखता हूँ कि तेरा भगवान कहाँ है? इस प्रकार दुर्वचन कहता हुआ क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु उस स्तम्भ को तोड़ने के लिए जाता है। देखो, बिल्कुल उचित समय है, सायंकाल का समय और खम्भे के अन्दर भगवान विराजमान् हैं -
हिरण्यकशिपु एक हाथ में तलवार लेकर खम्भे की ओर दौड़ पड़ता है और उस खम्बे पर एक मुष्टिका का प्रहार करता है। किसी साधारण खम्भे के ऊपर कोई आघात करे तो उसमें से थोड़ी-सी आवाज आ सकती है, लेकिन वहाँ पर तो ऐसी आवाज हुई मानो पूरा ब्रह्माण्ड फट रहा हो। ‘येनाण्डयकटाहमस्फुटत्’ उस भयंकर आवाज को सुनकर हिरण्यकशिपु चौंककर पीछे की ओर आ गया। उसने सोचा खम्भे के ऊपर मारने से ऐसी आवाज तो नहीं हो सकती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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