प्रभा तिवारी (वार्ता | योगदान) ('<div class="bgsurdiv"> <h4 style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''श्रीमद्भागवत प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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− | स्त्री में आसक्त होने के कारण | + | स्त्री में आसक्त होने के कारण पुरञ्जन स्त्री बन गया। पाण्ड्य देश के राजा मलयध्वज के साथ उसका विवाह हुआ। वे राजा तो बड़े भगवदभक्त थे। जब उनकी सन्तानें बड़ी हो गईं तो उनको अपनी सम्पत्ति बाँट कर वे अपनी पत्नी के साथ तप करने के लिए वन में चल दिए। वहाँ वे भगवद भजन में लग गए। उन्हें तत्त्वज्ञान प्राप्त हो गया। और वे पूर्णतः उपरत हो गए। उनकी पत्नी जो पूर्वजन्म में पुरन्जन थी उसे पहले तो पता ही नहीं चला कि उसके पति ने शरीर छोड़ दिया है। |
जब पता लगा तो वह रोने लगी, तब उसका जो ‘अविज्ञात’ नाम का मित्र था वह वहाँ पहुँचकर उसे समझाने लगा कि देखो यह पुरुष कौन है जिसके लिए रोते हो? तुम मुझे पहचानते हो? हम दोनों साथ-साथ निकले थे। परन्तु तुम तो एक स्त्री को देखकर मुग्ध हो गये। और तुमने मुझे भुला दिया। वास्तव में न तुम स्त्री हो न पुरुष। | जब पता लगा तो वह रोने लगी, तब उसका जो ‘अविज्ञात’ नाम का मित्र था वह वहाँ पहुँचकर उसे समझाने लगा कि देखो यह पुरुष कौन है जिसके लिए रोते हो? तुम मुझे पहचानते हो? हम दोनों साथ-साथ निकले थे। परन्तु तुम तो एक स्त्री को देखकर मुग्ध हो गये। और तुमने मुझे भुला दिया। वास्तव में न तुम स्त्री हो न पुरुष। | ||
− | तुम तो शुद्ध चैतन्य स्वरूप हो। इस प्रकार अविज्ञात ने | + | तुम तो शुद्ध चैतन्य स्वरूप हो। इस प्रकार अविज्ञात ने पुरञ्जन (जो अब स्त्री बना हुआ है) को अपने स्वरूप की याद दिलायी। उसका सारा दुःख दूर हो गया।<br /> |
− | प्राचीनबर्हि कहता है - महाराज, आपने जो यह कहानी सुनायी उसका अर्थ मुझे कुछ ज्यादा समझ में नहीं आया। कर्म में ही रत होने के कारण मेरी बुद्धि गड़बड़ा गयी है। अतः इसका तात्पर्य आप मुझे | + | प्राचीनबर्हि कहता है - महाराज, आपने जो यह कहानी सुनायी उसका अर्थ मुझे कुछ ज्यादा समझ में नहीं आया। कर्म में ही रत होने के कारण मेरी बुद्धि गड़बड़ा गयी है। अतः इसका तात्पर्य आप मुझे समझाकर बताइये। |
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15:31, 19 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
17.पुरञ्जनोपाख्यान
इस प्रकार रहते-रहते वह बूढ़ा हो गया। चण्डवेग नामक गन्धर्व राजा ने अपनी सेना के साथ उस नगरी पर आक्रमण कर दिया। उसकी नगरी जलने लगी। तब वह सोचता है - मेरी पत्नी का क्या होगा? तब तक उसकी पत्नी जलकर खत्म हो जाती है और वह स्वयं भी खत्म हो जाता है। तो यह पुरञ्जन भी मृत्यु को प्राप्त हो गया। स्त्री में आसक्त होने के कारण पुरञ्जन स्त्री बन गया। पाण्ड्य देश के राजा मलयध्वज के साथ उसका विवाह हुआ। वे राजा तो बड़े भगवदभक्त थे। जब उनकी सन्तानें बड़ी हो गईं तो उनको अपनी सम्पत्ति बाँट कर वे अपनी पत्नी के साथ तप करने के लिए वन में चल दिए। वहाँ वे भगवद भजन में लग गए। उन्हें तत्त्वज्ञान प्राप्त हो गया। और वे पूर्णतः उपरत हो गए। उनकी पत्नी जो पूर्वजन्म में पुरन्जन थी उसे पहले तो पता ही नहीं चला कि उसके पति ने शरीर छोड़ दिया है। जब पता लगा तो वह रोने लगी, तब उसका जो ‘अविज्ञात’ नाम का मित्र था वह वहाँ पहुँचकर उसे समझाने लगा कि देखो यह पुरुष कौन है जिसके लिए रोते हो? तुम मुझे पहचानते हो? हम दोनों साथ-साथ निकले थे। परन्तु तुम तो एक स्त्री को देखकर मुग्ध हो गये। और तुमने मुझे भुला दिया। वास्तव में न तुम स्त्री हो न पुरुष। तुम तो शुद्ध चैतन्य स्वरूप हो। इस प्रकार अविज्ञात ने पुरञ्जन (जो अब स्त्री बना हुआ है) को अपने स्वरूप की याद दिलायी। उसका सारा दुःख दूर हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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