गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 15
राजन ! वायु के वेग से उड़ी हुई धूल के कारण सब ओर अन्धकार छा गया। भोज, वृष्णि, अन्धक, मधु, शूरसेन तथा दशार्ह वंश के योद्धा उस माहयुद्ध में भयभीत हो गये। यदुश्रेष्ठ! वीरों ने अपने अस्त्र-शस्त्र नीचे डाल दिये । मैथिल ! तब इस भय के निवारण का उपाय जानने वाले श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न ने पिता के दिये हुए धनुष को हाथ मे ले कर बाणों द्वारा सात्त्विक महाविद्या का प्रयोग किया। फिर जैसे सूर्य अपनी किरणों से कुहासे तथा बादलों को छिन्न-भिन्न कर डालते हैं, उसी प्रकार प्रद्युम्न बाणों द्वारा पिशाचों, नागों, यक्षों, राक्षसों तथा गन्धर्वों को नष्ट कर दिया। जैसे हवा कमल को उड़ाकर पृथ्वी पर फेंक देती है, उसी प्रकर प्रद्युम्न ने बाणों द्वारा रथ और वाहन सहित शत्रुराजा पुण्ड को दो घड़ी तक आकाश में घुमाकर रणभूमि में पटक दिया। राजा की मूर्च्छा दूर होने पर वे पराजित हो प्रद्युम्न की शरण में गये और तत्काल भेंट देकर उन्होंने श्रीकृष्णकुमार को प्रणाम किया। वहाँ से अपनी सेना द्वारा शोणनद और विपाशा (व्यास) नदी पर करते हुए यदुकुलनन्दन धनुर्धर वीर प्रद्युम्न केकय देश में आ पहुँचे। केकय देश के राजा महाबली धृतकेतु वसुदेव की बहिन साक्षात श्रुतकीर्ति के महान पति थे। उन्होंने यादवों सहित प्रद्युम्न का बडे़ भक्ति-भाव से पूजन किया। राजन् ! वे श्रीकृष्ण के प्रभाव को जानते थे । इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में विश्वजित खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘केकय देश पर विजय’ नामक पन्द्रहवां अध्याय पूरा हुआ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |