गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 24
अनुशाल्व और यादव वीरों में घोर युद्ध श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन् ! सान्दीपनि मुनि का यह वचन सुनकर अनिरुद्ध को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने भगवान श्रीकृष्णचंद्र के चरणों में अपना मन लगाकर उन मुनीश्वर से कहा– प्रभो ! आपके उपदेश रूपी खड्ग से मेरा मोहरूपी शत्रु नष्ट हो गया। अब आप आज ही अपने पुत्र के साथ श्रीकृष्णपुरी द्वारका को पधारिए। उनकी यह बात सुनकर सान्दीपनि मुनि प्रसन्नतापूर्वक श्रीकृष्ण के दिए हुए पुत्र के साथ रथ पर बैठ कर द्वारका पुरी को गए। द्वारकापुरी में बलराम और श्रीकृष्ण ने बड़े आदर के साथ उन्हें ठहराया। समस्त यादवों तथा भोजराज उग्रसेन ने विधिपूर्वक उनका पूजन किया। इधर प्रद्युम्न कुमार अनिरुद्ध ने सोने की सांकल में बंधे हुए अत्यंत उज्ज्वल श्याम कर्ण अश्व को विजय यात्रा के लिए खोल दिया। वह घोड़ा राजाधिराज उग्रसेनदेव का वैभव सूचित करता हुआ वेगपूर्वक आगे बढ़ा और उस राजपुर में चला गया, जहाँ शाल्व का भाई राजा अनुशाल्व नित्य राज्य करता था। स्वेच्छानुसार वहाँ पहुँचे हुए अश्व को अनुशाल्व ने पकड़ लिया और उसके भाल में बंधे हुए पत्र को बांचा। बांचकर उसे बड़ा हर्ष हुआ। सारा अभिप्राय समझ कर रोष से उसके ओठ फड़कने लगे। वह टेढ़ी आंखों से देखता हुआ अपने सैनिकों से बोला– बड़े सौभाग्य की बात है कि मेरे सारे शत्रु स्वयं यहाँ आ गए। मैं उन सबको मार डालूंगा, जिन्होंने मेरे भाई का वध किया है। ऐसा कहकर और यादवों को तिनके के समान मानकर दस अक्षौहिणी सेना के साथ वह नगर से बाहर निकला। उसी समय समस्त वृष्णिवंशियों ने देखा, सामने विशाल सेना आई है और बाण वर्षा कर रही है, तब उन्होंने भी बाण बरसाना आरंभ किया। उस रणक्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच खड्ग, बाण, शक्ति और भिन्दीपालों द्वारा घोर युद्ध होने लगा। अनुशाल्व की सेना भाग चली। यह देख महाबली अनुशाल्व ने उसे रोका और सिंहनाद करते हुए रथ के द्वारा वह स्वयं युद्ध के मैदान में आया। उसे आया देख श्रीकृष्ण नंदन दीप्तिमान उसके साथ युद्ध करने के लिए तत्काल सामने जा पहुँचे। दीप्तिमान को युद्धभूमि में देखकर अनुशाल्व अमर्ष से भर गया और अपने धनुष से चलाए गए दस बाणों द्वारा उन पर आघात किया। मानो किसी बाघ ने हाथी पर पंजे मार दिए हों। उन बाण समूहों से ताड़ित होने पर दीप्तिमान की भुजा क्षत विक्षत हो खून से लथ पथ हो गई। उन्होंने तत्काल धनुष उठाकर रोषपूर्वक दस बाण हाथ में लिए। उन बाणों को कोदण्ड पर रखकर दीप्तिमान ने छोड़ा। राजन ! वे बाण अनुशाल्व के शरीर को विदीर्ण करके बाहर निकल गए, जैसे अनेक गरुड़ घोंसले छोड़कर सहसा बाहर चले गए हों। उन बाणों से गायल हुआ अनुशाल्व रणभूमि में मूर्च्छित हो गया, तब उसके समस्त सैनिकों को ओठ रोष से फड़कने लगे और वे चित्र विचित्र शस्त्रों और बाणों द्वारा युद्ध स्थल में दीप्तिमान पर चोट करने लगे। उस समय श्रीहरि के पुत्र भानु ने आकर जैसै भानु (सूर्य) कुहासे के बादलों को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार अपने बाणों द्वारा समस्त शत्रुओं को छिन्न–भिन्न कर दिया। फिर तो अनुशाल्व के सारे सैनिक भाग चले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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