गर्ग संहिता
गर्ग संहिता-माहात्म्य : अध्याय 1
गर्ग संहिता के प्राकट्य का उपक्रम जो श्रीकृष्ण को ही देवता (आराध्य) मानने वाले वृष्णिवंशियों के आचार्य तथा कवियों में सर्वश्रेष्ठ हैं, उन महात्मा श्रीमान गर्गजी को नित्य बारंबार नमस्कार है। शौनक जी बोले- ब्रह्मन् ! मैंने मुख से पुराणों का उत्तम-से-उत्तम माहात्म्य विस्तारपूर्वक सुना है, वह श्रोत्रेन्दिय के सुख की वृद्धि करने वाला है। अब गर्ग मुनि की संहिता का जो सार रूप माहात्म्य है, उसका प्रयत्नपूर्वक विचार करके मुझसे वर्णन कीजिये। अहो! जिसमें श्रीराधा-माधव की महिमा का विविध प्रकार से वर्णन किया गया है, वह गर्ग मुनि की भगवल्लीला-सम्बन्धिनी संहिता धन्य है। सूतजी कहते हैं- अहो शौनक ! इस माहात्म्य को मैंने नारद जी से सुना है। इसे सम्मोहन-तन्त्र में शिवजी ने पार्वती से वर्णन किया था। कैलास पर्वत के निर्मल शिखर पर, जहाँ अलकनन्दा के तट पर अक्षय वट विद्यमान है,उसकी छाया में शंकरजी नित्य विराजते हैं। एक समय की बात है, सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी गिरिजा ने प्रसन्नतापूर्वक भगवान शंकर से अपनी मनभावी बात पूछी, जिसे वहाँ उपस्थित सिद्धगण भी सुन रहे थे। पार्वती ने पूछा- नाथ ! जिसका आप इस प्रकार ध्यान करते हैं, उसके उत्कृष्ट चरित्र तथा जन्म कर्म के रहस्य का मेरे समक्ष वर्णन कीजिये। कष्टहारी शंकर ! पूर्वकाल में मैंने साक्षात आपके मुख से श्रीमान गोपालदेव के सहस्त्रनाम को सुना है। अब मुझे उनकी कथा सुनाइये महादेवजी बोले- सर्वमंगले ! राधापति परमात्मा गोपालकृष्ण की कथा गर्गसंहिता में सुनी जाती है। पार्वती ने पूछा- शंकर पुराण और संहिताएँ तो अनेक हैं, परन्तु आप उन सबका परित्याग करके गर्गसंहिता की ही प्रशंसा करते हैं,उसमें भगवान की किस लीला का वर्णन है, उसे विस्तार पूर्वक बतलाइये। पूर्वकाल में किसके द्वारा प्रेरित होकर गर्गमुनि ने इस संहिता की रचना की थी ? देव ! इसके श्रवण से कौन-सा पुण्य होता है तथा किस फल की प्राप्ति होती है ? प्राचीनकाल में किन-किन लोगों ने इसका श्रवण किया है ? प्रभो ! यह सब मुझे बताइये। सूत जी कहते हैं- अपनी प्रियापार्वती का ऐसा कथन सुनकर भगवान महेश्वर का चित्त प्रसन्न हो गया। उस समय वे सभा में विराजमान थे। वहीं उन्होंने गर्गद्वारा रचित कथा का स्मरण करके उत्तर देना आरम्भ किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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