गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 45
गोपांगनाओं द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए उनका आह्वान और श्रीकृष्ण का उनके बीच में आविर्भाव गोपियाँ बोलीं– जो अपने अधर बिम्ब की लालिमा से मूंगे को लज्जित करते हैं और मधुर मुरलीनाद से विनोद मानते आनंद पाते हैं, जिनका मुखारविंद नीलकमल के समान कोमल तथा श्याम है, उन गोपकुमार श्यामसुंदर की हम उपासना करती हैं। जिनकी अंगकान्ति सांवली है, जो वन विहार के रसिक हैं, जिनका अंग–अंग कोमल है, जिनके नेत्र प्रफुल्ल कमलदल के समान सुंदर एवं विशाल हैं, जो भक्त जनों की अभीष्ट कामना पूर्ण कर देते हैं, व्रज सुंदरियों के नेत्रों को शीतल करने वाले हैं, उन मनमोहन श्रीकृष्ण का हम भजन करती हैं। जिनके लोचनांचल विशेष चंचल हैं और कोमल अधर अर्धविकसित कमल की शोभा धारण करते हैं, जिनके हाथों की अंगुलियाँ और मुख बांसुरी से सुशोभित हैं, उन वेणुवादन रसिक माधव का हम चिंतन करती हैं। जिनके दाँत किंचित अंकुरित हुई कुन्दकलिका के समान उज्ज्वल हैं, जो व्रजभूमि के भूषण हैं, अखिल भुवन के लिए मंगलमयी शोभा से संपन्न हैं, जो अपने शब्द और सौरभ से मन को हर लेता है, श्रीहरि के उस सुंदर वेष को हम गोपांगनाएँ खोज रही हैं। जिनकी आकृति देवताओं द्वारा पूजित होती हैं, जिनके चरणारविंदों के अमृत का मुनीश्वरगण नित्य निरंतर सेवन करते रहते हैं, वे कमलनयन भगवान श्यामसुंदर नित्य हम सबका कल्याण करें। जो गोपों के साथ मल्लयुद्ध का आयोजन करते हैं, जिन्होंने युद्ध में बड़े–बड़े चतुर जवानों को परास्त किया है तथा जो संपूर्ण योगियों के भी आराध्य देवता हैं, उन श्रीहरि का हम सदैव सेवन करती हैं। उमड़ते हुए नूतन मेघ के समान जिनकी आभा है, जिनका लोचनाञ्चल प्रफुल्ल कमल की शोभा को छीने लेता है, जो गोपांगनाओं के हृदय को देखते–देखते चुरा लेते हैं तथा जिनका अधर नूतन पल्लवों की शोभा को तिरस्कृत कर देता है, उन श्यामसुंदर की हम उपासना करती हैं। जो अर्जुन के रथ की शोभा है, समस्त संचित पापों को तत्काल खंडित कर देने वाला है और वेद की वाणी का जीवन है, वह निर्मल श्यामल तेज हमारे मन में सदा स्फुरित होता रहे। जिनकी दृष्टि परंपरा गोपिकाओं के वक्ष:स्थल और चंचल लोचनों के प्रांत में पड़ती रहती है तथा जो बालक्रीड़ा के रस की लालसा से इधर–उधर घूमते रहते हैं, उन माधव का हम दिन–रात ध्यान करती हैं। जिनके मस्तक पर नीलकण्ठ (मोर) के पंख का मुकुट शोभा पाता है, जिनके अंग वैभव (कान्ति) को नील मेघ की उपमा दी जाती है, जिनके नेत्र नीलकमल दल के समान शोभा पाते हैं, उन नील केश पाशधारी श्याम सुंदर का हम भजन करती हैं। व्रज की युवतियाँ जिनके लीला वैभव का सदा गान करती हैं, जो कोमल स्वर में मुरली बजाया करते हैं तथा जो मनोऽभिराम संपदाओं के धाम हैं, उन सब सार स्वरूप कमलनयन श्रीकृष्ण का हम भजन करती हैं। जो मन पर मोहनी डालने वाले और उत्तम शार्गंधनुष धारी हैं, जो मानवती गोपांगनाओं को छोड़कर निकल गए हैं तथा नारद आदि मुनि जिनका सदा भजन सेवन करते हैं, उन नंद गोपनंदन का हम भजन करती हैं। जो श्रीहरि असंख्य रमणियों से घिरे रह कर रासमण्डल में सब पर विजय पाते हैं, उन्हीं प्रियतम श्याम सुंदर को वन में राधा सहित दु:ख उठाती हुई हम व्रजवनिताएँ ढूँढ़ रही हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |