गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 5
यादव-सेना की कच्छ और कलिंग देश पर विजय श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! तुमने बहुत अच्छ बात पूछी है। तुम्हारी विमल बुद्धि को साधुवाद ! श्रीकृष्ण के भक्तों का चरित्र तीनों लोकों को पवित्र कर देता है। राजन्! वर्षाकाल में बादलों से बरसती हुई जलधाराओं को तथा भूमि के समस्त धूलिकणों को कोई विद्वान पुरुष भले ही गिन डाले, किंतु महान श्रीहरि गुणों को कोई नहीं गिन सकता। रुक्मिणी नन्दन प्रद्युम्न उस श्वेत छत्र से सुशोभित थे, जिसकी छाया चार योजन तक दिखायी देती थी। वे इन्द्र के दिये हुए रथ पर आरुढ़ हो अपनी सेना के साथ पहले कच्छ देशों को जीतने के लिये उसी प्रकार गये, जैसे पूर्वकाल में भगवान शंकर ने त्रिपुरों को जीतने के लिये रथ से यात्रा की थी। कच्छ देश का राजा शुभ्र शिकार खेलने के लिये निकला था। वह यादवों की सेना को आयी हुई जान अपनी राजधानी हालापुरी को लौट गया। प्रद्युम्न की आयी हुई सेना हाथियों के पदाघात से वृक्षों को चूर-चूर करती और विभिन्न देशों के भवनों को गिराती हुई चल रही थी। उससे उठे हुए धूलिसमूहों से आकाश अन्धकाराच्छन्न हो गया और कच्छ देश के सभी निवासी भयभीत हो गये। उस समय राजा शुभ्र अत्यंत हर्षित हो तत्काल सोने की मालाओं से अलंकृत पांच सौ हाथी, दस हजार घोड़े और बीस भार सुवर्ण लेकर सामने आया। उसने भेंट देकर पुष्पहार से अपने हाथ बांधकर प्रद्युम्न को प्रणाम किया। इससे प्रसन्न होकर शम्बरारि प्रद्युम्न ने राजा शुभ्र को रत्नौं की बनी हुए एक माला पुरस्कार के रूप में दी और उसके राज्य पर पुन: उसी को प्रतिष्ठित कर दिया। राजन् ! साधु पुरुषों का ऐसा ही स्वभाव होता है। तदनन्तर बलवान रुक्मिणी नन्दन कलिंग देश को जीतने के लिये गये। उनके साथ फहराती पताकाओं से सुशोभित उत्तम सेनाएं थीं। उन्हें देखकर ऐसा लगता था, मानो मेघों की मण्डली के साथ देवराज इन्द्र यात्रा कर रहे हों। कलिंगराज अपनी सेना तथा शक्तिशाली हाथी-सवारों के साथ महात्मा प्रद्युम्न के सामने युद्ध करने के लिये निकला। कलिंग को आया देख धुनर्धरों में श्रेष्ठ अनिरुद्ध एकमात्र रथ लेकर यादव सेना के आगे खडे़ हो उसकी सेनाओं के साथ युद्ध करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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