गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 49
राजसूय यज्ञ में ऋषियों, ब्राह्मणों, राजाओं, तीर्थों, क्षेत्रों, देवगणों तथा सुहृद् सम्बन्धियों का शुभागमन बहुलाश्व ने पूछा- विप्रवर ! आप परावरवेत्ताओं में श्रेष्ठ हैं; अत: मुझे यह बताइये कि राजा उग्रसेन ने किस प्रकार राजसूययज्ञ का विधिपूर्वक अनुष्ठान किया ।।1।। नारदजी ने कहा- राजन् ! तदनन्तर समस्त धर्मात्माओं में श्रेष्ठ राजा उग्रसेन ने भगवान श्रीकृष्ण की सहायता से क्रतुराज राजसूय का सम्पादन किया। यदुकुल के आचार्य गर्गजी से यत्नपूर्वक मुहूर्त पूछकर भाई बन्धुओं तथा सुहृदों को निमन्त्रण दिया। अत्यन्त भक्ति भाव से बुलाये जाने पर ऋषि, मुनि तथा ब्राह्मण सब लोग अपने पुत्रों और शिष्यों के साथ द्वारका में आये। राजन् ! साक्षात् वेदव्यास, पराशर, मैत्रेय, पैल, सुमन्तु, दुर्वासा, वैशम्पायन, जैमिनि, भार्गव परशुराम, दत्तात्रेय, असित, अंगिरा, वामदेव, अन्नि, वसिष्ठ, कण्व, विश्वामित्र, शतानन्द, भारद्वाज, गौतम, कपिल, सनकादि, विभाण्ड, पतंजलि, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, प्राडविपाक, मुनिश्रेष्ठ शाण्डिल्य तथा दूसरे-दूसरे मुनि वहाँ शिष्यों सहित पधारे। ब्रह्मा, शिव, इन्द्र, देवगण, रुद्रगण, आदित्यगण, मरुद्रण, समस्त वसुगण, अग्नि, दोनों अश्विनीकुमार, यम, वरुण, सोम, कुबेर, गणेश, सिद्ध, विद्याधर, गन्धर्व तथा किंनर आदि का शुभागमन हुआ। गन्धर्व सुन्दरियाँ, अप्सराएँ और समस्त विद्याधरियां वहाँ आयीं। वेताल, दानव, दैत्य, प्रह्लाद, बलि, भीषण राक्षसों के साथ लंकापति विभीषण तथा समस्त वानरों के साथ वायुनन्दन हनुमान पधारे। ऋक्षों और दाढ़वाले वन्य पशुओं के साथ बलवान ऋक्षराज जाम्बवान का आगमन हुआ। समस्त पक्षियों के साथ बलवान पक्षिराज गरुड़ आये। समस्त सर्पगणों को साथ लिये बलवान नागराज वासुकि पधारे। सम्पूर्ण कामधेनुओं के साथ गोरूपधारिणी पृथ्वी का आगमन हुआ। समस्त मूर्तिमान पर्वतों के साथ मेरु और हिमालय पधारे। गुल्मों, वृक्षों और लताओं के साथ प्रयाग के वृक्षराज अक्षयवट का शुभागमन हुआ। महानदियों के साथ श्रीगंगा और यमुना नदी आयीं। रत्नों की भेंट के साथ सातों समुद्र पधारे। ये सब के सब उगसेन के राजसूय यज्ञ में सहर्ष आये। सात स्वर, तीन ग्राम, नौ अरण्य, महीतल में नौ ऊसर, सिद्धाश्रम, कुण्डों और समस्त सरोवरों सहित विनशन (कुरु क्षैत्र), समस्त उपवनों के साथ दण्डक आदि वन ये सब के सब समग्र विमल क्षेत्रों के साथ वहाँ उपस्थित हुए। व्रज से श्रीमान गिरिराज गोवर्धन, वृन्दावन, दूसरे दूसरे वन, सरोवर तथा कुण्ड भी पधारे। रानी कीर्तिदा और गोपियों के साथ गोपिकेश्वरी यशोदा साक्षात पधारीं। अपने करोड़ों सखी समूहों के साथ शिबि कारुढ़ा श्रीराधा का भी शुभागमन हुआ। गोपियों के सौ यूथ भी द्वार का में सानन्द पधारे। जहाँ आजकल गोपी भूमि है, वहीं उन्हें ठहराया गया। उन्हीं के अंगराग से वहाँ गोपीचन्दन प्रकट हुआ। जिसके अंग में गोपीचन्दन लग जाता है, वह मनुष्य नर से नारायण हो जाता है। चारों वर्णों के सभी लोग उस यज्ञ में उपस्थित हुए थे। प्रज्ञाचक्षु धृतराष्ट्र, कलिका अवतार साक्षात दुर्योधन, शाल्व, भीष्म, कर्ण, कुन्तीपुत्र युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, दमघोष, वृद्ध शर्मा, महाराज जयसेन, धृष्टकेतु, भीष्मक, कोसलराज नग्नजित्, बृहत्सेन तथा तुम्हारे पितामह, साक्षात मिथिलेश्वर धृति तथा अन्य राजा, सुहृद-सम्बन्धी, बन्धु-बान्धव अपनी रानियों तथा पुत्र-पौत्रों के साथ उस यज्ञ में पधारे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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