गर्ग संहिता
गिरिराज खण्ड : अध्याय 2
गोपों द्वारा गिरिराज पूजन का महोत्व श्रीनारदजी कहते हैं– साक्षात ! श्रीनन्दनन्दन की यह बा सुनकर श्रीनन्द और सन्नन्द आदि व्रजेश्रगण बड़े विस्मित हुए। फिर उन्होनें पहले का निश्चय त्यागकर श्रीगिरिराज पूजन का आयोजन किया। मिथिलेश्वर ! नन्दराज अपने दोनों पुत्र- बलराम और श्रीकृष्ण को तथा भेंटपूजा की सामग्री को लेकर यशोदाजी के साथ गिरिराज-पूजन के लिये उत्कण्ठित हो प्रसन्नातापूर्वक गये। उनके साथ गर्गजी भी थे। वे अपनी पत्नी के साथ बहुत ऊंचे चित्र-विचित्र वर्णों से रंगे हुए तथा सोने की सांकल धारण करने वाले हाथी पर आरूढ़ हो, गौओं के साथ गोवर्धन पर्वत के समीप गये। मानो इन्द्राणी के साथ इन्द ऐरावतपर आरूढ़ हो शरदऋतु के श्वेत बादलों के साथ उपस्थित हुए हों। नन्द, उपनन्द और वृषभानुगण अपने पुत्रों, पोतों ओर पत्नियों के साथ यज्ञ का सारा संभार लिये गिरिराज के पास आ पहुँचे। सहस्त्रों बालरवि के दीप्ति से प्रकाशित शिबिका में आरूढ़ हो दिव्य वस्त्रों तथा रत्नमय आभूषणों से विभूषित श्रीराधा सुखी-समुदाय के साथ वहाँ आकर उसी प्रकार सुशोभित हुईं, जैसे शची चकोरी और भ्रमरियों के साथ शोभा पाती हों । राजन् ! श्रीराधा के दोनों बगल में आयी हुई विविध अलंकारों से अलंकृत तथा करोड़ों सखियों से आवृत दो सर्वश्रेष्ठ चन्द्रमुखी सखियाँ-ललिता और विशाखा-चारु चँवर डुलाती हुई शोभा पाती थीं। नरेश्वर ! इसी प्रकार रमा, विरजा, माधवी, माया, यमुना और गंगा आदि बत्तीस सखियां, आठ सखियां, सोलह सखियां और उन सबके यूथ में सम्मिलित असंख्य सखियाँ वहाँ आयीं। मिथिलानिवासिनी, कोसल-प्रदेशवासिनी तथा अयोध्यापुर निवासिनी, श्रुतिरूपा, ऋषिरूपा, यज्ञसीता स्वरूपा तथा वनवासिनी गोपियों का समुदाय भी वहाँ उपस्थित हुआ। रमा आदि वैकुण्ठवासिनी देवियां, वैकुण्ड से भी उपर के लोकों में रहने वाली दिव्यांगनाएं परम उज्जवल श्वेतद्वीप की निवासीनी बालाएं और ध्रुवादि लोकों तथा लोकाचल में रहने-वाली देवीरूपा गोपांगनाओं का दल भी वहा आ गया। जो समुद्र से उत्पन्न लक्ष्मी की सखियाँ थीं, दिव्य गुणत्रमयी अंगनाएँ थीं, अदिव्य विमानचारियों की वनिताएँ थी, जो ओषधिस्वरूपा थी, जो जालन्धर के अन्त:पुर की स्त्रियाँ थी, जो समुद्र-कन्याएं थीं तथा जो बर्हिष्मतीनगरी तथा सुतल आदि लोकों में निवास करने वाली थी, उन समस्त दिव्यांगनाओं का समुदाय गिरिराज गोवर्धन के पास आकर विराजमान हुआ। इसी प्रकार अप्सराओं, समस्त नाग कन्याओं तथा व्रजवासिनियों के यूथ भी वस्त्राभूषणों से विभूषित हो, हाथों में पूजन-सामग्री और प्रदीप लिये गिरिराज के पास आ पहुँचे। बालक, युवक और वृद्ध गोप भी पीताम्बर, पगड़ी तथा मोरपंख से मण्डित तथा सुन्दर हार, गुंजा और वनमालाओं से विभूषित हो, नूतन यष्टि तथा वेणु लिये, वहाँ आकर शोभा पाने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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