गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 20
कौरवों की सेना का युद्धभूमि में आना; दोनों ओर के सैनिकों का तुमुल युद्ध और प्रद्युम्न के द्वारा दुर्योधन की पराजय तत्पश्चात पीने कवच और टेढी पगड़ी से सुशोभित दो लाख वीर योद्धा, जो अनेक संग्रामों मे विजयकीर्ति पा चुके थे, युद्ध के लिये निकले। वे भी हाथियों पर ही बैठे थे। कोई लाल रंग के वस्त्र पहने और लाल रंग के ही आभूषणों से विभूषित थे। वे लाल रंग की ही झूल से सज्जित ऊँचे गजराजों पर चढ़कर युद्ध के लिये निकले थे। कुछ हरे वस्त्रों से सुसज्जित थे। कुछ लोग श्वेत वस्त्र धारण किये हुए और कछ गुलाबी कपड़ों से सजे हुए युद्ध के लिये आये थे। करोड़ों राजनयकुमार देवविमानों के समान रथों पर बैठकर आये थे। जो अत्यन्त ऊँचे और सिंहध्वज से सुशोभित थे। उन रथों पर पताकाएं फहरा रही थीं। अंग-वंग तथा सिन्धु देशों में उत्पन्न हुए चंचल घोड़ों पर, जो मन के समान वेगशाली तथा सोने के आभूषणों से विभूषित थे, सवार हो बहुत से क्षत्रिय-योद्धा शस्त्र लिये नगर से बाहर निकले। राजन ! लोहे के कवचों से अलंकृत तथा विद्याधरों के समान युद्धकुशल बहुसंख्यक वीर चारों ओर से झुंड-के-झुंड निकलने लगे। भेरी, मृदंग, पटह और आनक आदि युद्ध के बाजे बजने लगे। सूत, मागध और वंदीजन कौरवों का यश गा रहे थे। धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन अपनी विशाल सेना के बीच बहुत बडे़ रथ पर बैठा शोभा पा रहा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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