गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 49
यादवों और कौरवों का घोर युद्ध श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन् ! भीष्म, द्रोण और कृप आदि के साथ दुर्योधन ने अपने वीरों के भग्न हुए मुखों को देखकर क्रोधपूर्वक कहा– आश्चर्य की बात है कि नीच यादव स्वयं मौत के मुख में चले आए। क्या वे मूर्ख महाराज धृतराष्ट्र के महान बल को नहीं जानते हैं ? ऐसा कहकर दुर्योधन ने घोड़े, हाथी, रथ और पैदल वीरों से युक्त अपनी चतुरंगिणी सेना युद्ध में यादवों का सामना करने के लिए भेजी। वह विशाल सेना दस अक्षौहिणियों के द्वारा भूतल को कंपित करती और शत्रुओं को डराती हुई बलपूर्वक आगे बढ़ी। उसे आती देख वीरों से विभूषित जाम्बतीनंदन साम्ब ने बड़े हर्ष और उत्साह से अपनी सेना को युद्ध के लिए प्रेरणा दी । तब समस्त कौरव अपनी रक्षा के लिए क्रौञ्च व्यूह का निर्माण करके उसी में सब के सब खड़़े हो गए। उसके मुख भाग में भीष्म खड़े हुए और ग्रीवा भाग में आचार्य द्रोण। दोनों पंखों की जगह कर्ण तथा शुकनि स्थित हुए और पुच्छभाग में दुर्योधन। उस क्रौञ्चव्यूह के मध्य भाग में चतुरंग सैनिकों के साथ कौरवों की विशाल वाहिनी खड़ी हुई। यादवों जब शत्रुओं के लिए दुर्जय उस क्रौञ्चव्यूह का निर्माण हुआ देखा, तब वे युद्ध से शंकित हो उस क्रौञ्चव्यूह पर दृष्टि रखते हुए साम्ब से बोले– तुम भी यत्नपूर्वक व्यूह बना लो। साम्ब युद्ध की कला में बड़े निपुण थे। उन्होंने अपने सैनिकों की व्यूह रचना विषयक बात सुनकर भी कौरवों को कुछ न गिनते हुए रणक्षेत्र में व्यूह का निर्माण नहीं किया । नरेश्वर ! जब दोनों और की सेनाएँ युद्ध करने के लिए आगे बढ़ीं, तब दो घड़ी तक सारी पृथ्वी जोर-जोर से कांपती रही। दोनों सेनाओं में तत्काल रणभेरियाँ बज उठीं और शंखनाद होने लगे। सब ओर जगह–जगह धनुषों की टंकारें सुनाई देने लगीं। वहाँ हाथी चिंग्घाड़ते और घोड़े हिनहिनाते थे। शूरवीर संहनाद करते और रथों की नेमियाँ (पहिये) घरघराहट उत्पन्न करती थी। सैनिकों की पदधूलि से युद्ध स्थल में अंधकार छा गया। आकाश मलिन हो गया और वहाँ सूर्य का दीखना बंद हो गया। फिर तो दोनों सेनाओं में घोर घमासान युद्ध होने लगा। समरांगण में उभय पक्ष के सैनिक एक–दूसरे पर बाणों, गदाओं, परिघों, शतघ्नियों, शक्तियों तथा तीखे बाणों का प्रहार करने लगे। गजारोही गजारोहियों से, रथी रथियों से, घुड़सवार घुड़सवारों से तथा पैदल योद्धा पैदलों से जूझने लगे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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