गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 17
श्री यमुना का स्त्रोत मांधाता बोले – मुनिश्रेष्ठ सौभरे ! सम्पूर्ण सिद्धि प्रदान करने वाला जो यमुनाजी का दिव्य उत्तम स्तोत्र है, उसका कृपापूर्वक मुझसे वर्णन कीजिये। श्रीसौभरि मुनि ने कहा– महामते ! अब तुम सूर्यकन्या यमुना का स्तोत्र सुनो, जो इस भूतल पर समस्त सिद्धियों को देने वाला तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप चारों पुरुषार्थों का फल देने वाला है। श्रीकृष्ण के बायें कंधे से प्रकट हुई ‘कृष्णा’ को सदा मेरा नमस्कार है। कृष्णे ! तुम श्रीकृष्णस्वरूपिणी हो, तुम्हें बारंबार नमस्कार है। जो पापरूपी पंकजल के कलंग से कुत्सित कामी कुबुद्धि मनुष्य सत्पुरुषों के साथ कलह करता है, उसे भी गूँजते हुए भ्रमर और जल पक्षियों से युक्त कलिन्दनन्दिनी यमुना वृन्दावनधाम प्रदान करती हैं। कृष्णे ! तुम्हीं साक्षात श्रीकृष्णस्वरूपा हो। तुम्हीं प्रलयसिन्धु के वेगयुक्त भँवर में महामत्स्यरूप धारण करके विराजती हो। तुम्हारी उर्मि-उर्मि में भगवान कूर्मरूप से वास करते हैं तथा तुम्हारे बिन्दु-बिन्दु में श्रीगोविन्ददेव की आभा का दर्शन होता है। तटिनि ! तुम लीलावत हो, मैं तुम्हारी वन्दना करता हूँ। तुम घनी-भूत मेघ के समान श्याम कान्ति धारण करती हो। श्रीकृष्ण के बायें कंधे से तुम्हारा प्राकट्य हुआ है। सम्पूर्ण जलों की राशि रूप जो विरजा नदी का वेग है, उसको भी अपने बल से खण्डित करती हुई, ब्रह्माण्ड को छेदकर देवनगर, पर्वत, गण्डशैल आदि दुर्गम वस्तुओं का भेदन करके तुम इस भूमि खण्ड के मध्यभाग में अपनी तरंग मालाओं को स्थापित करके प्रवाहित होती हो। यमुने ! पृथ्वी पर तुम्हारा नाम दिव्य है। वह श्रवणपथ में आकर पर्वताकार पापसमूह को भी दण्डित एवं खण्डित कर देता है। तुम्हारा वह अखण्ड नाम में वाड्मण्डल वचनसमूह में क्षण भर भी स्थित हो जाय। यदि वह एक बार भी वाणी द्वारा गृहीत हो जाये तो समस्त पापों का खण्डन हो जाता है। उसके स्मरण से दण्डनीय पापी भी अदण्डनीय हो जाते हैं। तुम्हारे भाई सूर्यपुत्र यमराज के नगर में तुम्हारा ‘प्रचण्डा’ यह नाम सुदृढ़ अतिदण्ड बनकर विचरता है। तुम विषयरूपी अन्धकूप से पार जाने के लिये रस्सी हो, अथवा पापरूपी चूहों को निगल जाने वाली काली नागिन हो, अथवा विराट पुरुष की मूर्ति की वेणी को अलंकृत करने वाला नीले पुष्पों का गजरा हो या उनके मस्तक पर सुशोभित होने वाली सुन्दर नीलमणि की माला हो। जहाँ आदिकर्ता भगवान श्रीकृष्ण की वल्लभा, गोलोक में भी अतिदुर्लभा, अति सौभाग्यवती अद्वितीया नदी श्रीयमुना प्रवाहित होती है, उस भूतल के मनुष्यों का भाग्य इसी कारण से धन्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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