गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 16
चम्पावतीपुरी के राजा द्वारा अश्व का पकड़ा जाना, यादवों के साथ हेमांगद के सैनिकों का घोर युद्ध, अनिरुद्ध और श्रीकृष्ण पुत्रों के शौर्य से पराजित राजा का उनकी शरण में आना श्रीगर्गजी कहते हैं– राजन ! वहाँ से छूटने पर वह अश्व सब देशों का अवलोकन करता हूँ उशीनर जनपद के अंतर्गत चम्पावतीपुरी जा पहुँचा। राजा हेमांगद से परिपालित वह पुरी विशाल दुर्ग से मंडित थी। उसके भीतर चारों वर्णों के लोग निवास करते थे। वह पुरी गगनचुम्बी प्रासादों से परिवेष्टित थी। वहाँ पुण्यात्मा राजा हेमांगद महान शूरवीरों से घिरे रह कर अपने पुत्र हंसकेतु के साथ राज्य करते थे। नरेश्वर ! उन्होंने यादवों की अवहेलना करके महात्मा अनिरुद्ध के उस अश्व को अनायास ही पकड़ लिया। मानद ! राजा हेमांगद सोने की जंजीर से घोड़े को बांध कर नगर के सभी दरवाजों में कपाट और अर्गला आदि दे दिए तथा यादवों के विनाश के लिए दुर्ग की दीवारों पर दो लाख शतघ्नियां (तोपें) लगवा दीं और युद्ध का ही निश्चय किया। तत्पश्चात् सेना सहित अनिरुद्ध घोड़े की राह देखते हुए वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने चम्पावती के उपवन में डेरा डाल दिया। वहाँ घोड़े को न देख कर प्रद्युम्न कुमार ने श्रीकृष्णचंद्र के सखा उद्धव से इस प्रकार पूछा। अनिरुद्ध बोले– मंत्री प्रवर ! यह किसकी नगरी है। कौन मेरा घोड़ा ले गया है ? महामते ! आप जानते होंगे, सोच विचार कर बताइए उनका यह प्रश्न सुनकर बुद्धिमानों में श्रेष्ठ उद्धव ने शत्रुओं के वृतांत को समझ कर यह बात कही। उद्धव बोले– द्वारकानाथ ! इस नगरी का नाम चम्पावती है। यहाँ अपने पुत्र हंसध्वज के साथ राजा हेमांगद राज्य करते हैं। उन्होंने ही तुम्हारा घोड़ा पकड़ा है। यह राजा शूरवीर है। युद्ध किए बिना यज्ञ का घोड़ा नहीं देगा। यह नगर में ही रहकर भुशुण्डियों द्वारा दीर्घ काल तक युद्ध करेगा। वह नरेश युद्ध के लिए नगर से बाहर नहीं निकलेगा। अत: नरेश्वर ! तुम्हारी जैसी इच्छा हो वैसा करो। उद्धवजी की बात सुन कर अनिरुद्ध रोषपूर्वक बोले। अनिरुद्ध ने कहा– सत्पुरुषों में श्रेष्ठ उद्धवजी ! दुर्ग में रह कर युद्ध में लगे हुए इन बहुसंख्यक शत्रुओं को लोहे की बनी हुई शक्ति से समान बाणों द्वारा में आधे पल में मार गिराऊँगा। उद्धवजी की पूर्वोक्त बात सुनकर इस प्रकार रोष में भरे हुए यदुकुल तिलक अनिरुद्ध उस पुरी का विध्वंस करने के लिए शीघ्र ही गए और कोटि–कोटि बाणों की वर्षा करने लगे। अन्धकवंशी वीरों के बाण समूहों से उस पुरी में कोलाहल मच गया। वीर हंसध्वज आदि समस्त शत्रु शंकित हो गए। तदनन्तर राजा के कहने से उन वीरों ने साहसपूर्वक दुर्ग की दीवार पर चढ़ कर बाहर जमें हुए यादव सैनिकों को देखा। यदुकुल के श्रेष्ठ वीरों को कवच आदि से सुसज्जित देख वे सब के सब भयभीत हो उठे। यादव योद्धा अस्त्र-शस्त्रों से परिमंडित हो शस्त्रों की वृष्टि कर रहे थे। हेमांगद के सैनिकों ने उन पर चारों ओर से शतघ्नियों द्वारा आग बरसाना आरंभ किया। वे इस निश्चय पर पहुँच गए कि हम सभी शत्रुओं को मौत को घाट उतार देंगे, घोड़े को कदापि नहीं लौटाएंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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