गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 35
साम्ब द्वारा कालनाभ दैत्य का वध बहुलाश्व बोले- मुने ! आश्चर्य है, प्रद्युम्न कुमार ने बड़ा अद्भुत युद्ध किया। महादैत्य वृक के मारे जाने पर उस समरांगण में क्या हुआ। नारद जी ने कहा- राजन् ! वृक को मारा गया देख महान असुर कालनाभ बार बार धनुष टंकारता हुआ सूअर पर चढ़कर रणभूमि में आया। उस असुर ने समरांगण में अक्रूर को बीस, गद को दस, अर्जुन को दस, सात्यकि को पाँच, कृतवर्मा को दस, प्रद्युम्न को सौ, अनिरुद्ध को बीस, दीप्तिमान को पाँच और साम्ब को सौ बाण मारकर उन सबको घायल कर दिया। उसके बाणों की चोट से दो घड़ी के लिये वे सभी वीर व्याकुल हो गये। उन सबके घोड़े भी मारे गये तथा रथ रणभूमि में चूर-चूर हो गये। उसके हाथ की फुर्ती देखकर रुक्मिणीनन्दन प्रसन्न हो गये। उन्होंने कालनाभ को समरांगण में साधुवाद देकर उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। तत्पश्चात् प्रद्युम्न ने अपना धनुष लेकर उस पर एक बाण रखा। कोदण्ड से छूटे हुए उस बाण ने उस दैत्य के विशालकाय सूअर को ऊपर उठाकर लाख योजन दूर स्वर्गलोक की सीमा तक ले जाकर घुमाते हुए आकाश से भयंकर गर्जना करने वाले समुद्र में गिरा दिया। तत्पश्चात् साक्षात भगवान प्रद्युम्न ने दूसरे बाण का संधान किया। उस बाण ने भी महाबली कालनाभ को ऊपर ले जाकर घुमाते हुए बलपूर्वक चन्द्रावतीपुरी में पटक दिया। वहाँ गिरने पर कालनाभ के मन में कुछ घबराहट हुर्इ। वह दैत्यराज लाख भार की बनी हुई भारी गदा हाथ में लेकर पुन: रणभूमि में आ पहुँचा और यादव-सेना का विनाश करने लगा। वज्र सदृश गदा से हाथी, रथ, घोड़े और पैदल वीरों को वह बड़े वेग से उसी प्रकार धराशायी करने लगा, जैसे आँधी वृक्षों को गिरा देती है; किन्हीं को दोनों हाथों से उठाकर वह बलपूर्वक आकाश में फेंक देता था। राजन् ! वे आकाश से पृथ्वी पर वर्षा के ओलों की भाँति गिरते थे। तब जाम्बवती कुमार साम्ब ने गदा लेकर महान असुर कालनाभ के मस्तक पर गहरी चोट पहुँचायी। रणमण्डल के भीतर गदाओं द्वारा उन दोनों वीरों में घोर युद्ध होने लगा। वे दोनों ही गदाएँ आग की चिनगारियाँ छोड़ती हुई परस्पर टकराकर चूर चूर हो गयीं। फिर वे दोनों वीर दूसरी गदाएँ लेकर युद्ध के लिये खड़े हुए। उस समय कालनाभ ने जाम्बवती कुमार साम्ब से कहा 'मैं एक प्रहार से तुम्हारा काम तमाम कर सकता हूँ, इसमें संशय नहीं है। तब उस रणभूमि में साम्ब बोले- 'पहले तुम मेरे ऊपर प्रहार करो। तब कालनाभ ने साम्ब के मस्तक पर गदा से चोट की, किंतु जाम्बवती नन्दन साम्ब ने गदा के ऊपर गदा रोक ली और अपनी गदा से कालनाभ दैत्य की छाती में आघात किया। उस गदा की चोट से दैत्य की छाती फट गयी और वह मुंह से रक्त वमन करता हुआ प्राणशुन्य हो वज्र के मारे हुए पर्वत की भाँति पृथ्वी पर गिर पड़ा। नरेश्वर ! तब तो जय-जयकार होने लगी और सत्पुरुष साम्ब को साधुवाद देने लगे। देवताओं और मनुष्यों की दुन्दुभियाँ एक साथ ही बज उठी। देवता लोग साम्ब की सेना के ऊपर फूल बरसाने लगे, विद्याधरियां नाचने लगीं और गन्धर्वगण सानन्द गीत गाने लगे। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता विश्वजित खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘कालनाभ दैत्य का वध’ नामक पैंतीसवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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