गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 5
देवराज और उसकी देवसेना के साथ श्रीकृष्ण का युद्ध तथा विजयलाभ; पारिजात का द्वारकापुरी में आरोपण श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन ! श्रीकृष्णचन्द्र ने जब देखा कि देवराज इन्द्र गजराज ऐरावत पर विराजमान हो देवताओं के घिरकर युद्ध के लिये उपस्थित हैं, तब उन्होंने स्वयं शंख बजाया और उसकी ध्वनि से सम्पूर्ण दिशाओं को भर दिया। साथ वज्रोपम बाण-समूहों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। उस समय दिशाओं और आकाश को बहुसंख्यक बाणों से व्याप्त देख समस्त देवता चक्रधारी श्रीकृष्णचन्द्र के ऊपर बाणों की वृष्टि करने लगे। नरेश्वर ! भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं के छोड़े हुए एक-एक अस्त्र-शस्त्र के अपने बाणों द्वारा लीलापूर्वक सहस्त्र-सहस्त्र टुकड़े कर डाले। पाशधारी वरूण के नागपाश को सर्पभोजी गरुड़ काट डालते थे। यमराज के चलाये हुए लोकभयंकर दण्ड को भगवान श्रीकृष्ण ने गदा के आघात से अनायास ही भूमि पर गिरा दिया। फिर चक्र का प्रहार करके कुबेर की शिबिका को तिल-तिल करके काट डाला। सूर्यदेव को क्रोधपूर्ण दृष्टि से देखकर श्रीकृष्ण ने हतप्रतिभ कर दिया। महान अग्निदेव को सामने आया देख श्रीहरि ने मुख से पी लिया। तदनन्तर रुद्रगणों के द्वारा छोड़े गये त्रिशूलों को श्रीहरि ने रोषपूर्वक चक्र से छिन्न-भिन्न कर डाला और भुजाओं से मार- मारमार कर धराशायी कर दिया। भूपते ! तदनन्तर मरूद्गण, साध्यदेव और विद्याधरों ने माधव के ऊपर बाण समूहों की वर्षा आरम्भ की। बाणों की वर्षा करती हुई समस्त देवसेना को सामने आयी देख सत्यभामा को युद्धस्थल में बड़ा भय हो गया। उन्हें डरी हुई देख गोविन्द ने कहा- ‘सत्ये ! भय न करो। मैं यहाँ आयी हुई सारी देवसेना का संहार कर डालूँगा, इसमें संशय नहीं है’। ऐसा कहकर कुपित हुए भगवान श्रीकृष्ण ने र्शांगधनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा देवताओं का उसी प्रकार मार भगाया, जैसे सिंह अपने पंजों की मार से सियारों को खदेड़ देता है। तदनन्तर कंसनिषूदन श्रीकृष्ण ने कुपित होकर गरुड़ से कहा- ‘विनतानन्दन ! तुमने इस रणमण्डल में युद्ध नहीं किया’ यह सुनकर विष्णु रथ गरुड़ ने कुपित हो पत्नी सहित श्रीकृष्ण को कंधों पर धारण किये हुए ही पंजों और पंखों से तत्काल युद्ध आरम्भ कर दिया। वे अपनी चोंच से देवताओं को चबाते और घायल करते हुए युद्धभूमि में विचरने लगे। गरूड़ की मार खाकर देवता लोग इधर-उधर भागने लगे। राजन ! इन्द्र और उपेन्द्र दोनों महाबली वीर एक-दूसरे पर बाणों की वर्षा आरम्भ करते हुए जल की धारा बरसाने वाले दो मेघों के समान शोभा पाते थे। राजेन्द्र ! उस समय गरूड़ ऐरावत हाथी के साथ युद्ध करने लगे। हाथी ने अपने दांतों के आघात से गरूड़ को चोट पहुँचायी और गरूड़ ने भी अपनी चोंच और पंखों की मार से ऐरावत को छिन्न भिन्न कर डाला। यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण अकेले ही समस्त देवताओं तथा वज्रधारी इन्द्र के साथ जूझ रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण इन्द्र पर और इन्द्र मधुसूदन श्रीकृष्ण पर क्रोधपूर्वक बाणों की वर्षा करने लगे। वे दोनों एक-दूसरे को जीतने की इच्छा लिये जूझ रहे थे। जब सारे अस्त्र-शस्त्र और बाण कट गये, तब इन्द्र ने तत्काल ही वज्र उठा लिया और भगवान श्रीकृष्ण ने चक्र हाथ में ले लिया। देवेश्वर को वज्र और नरेश्वर श्रीकृष्ण को चक्र हाथ में लिये देख उस समय चराचर प्राणियों सहित तीनों लोकों मे हाहाकार मच गया। वज्रधारी इन्द्र के चलाये हुए वज्र को भगवान श्रीकृष्ण ने बायें हाथ से पकड़ लिया, परंतु अपना चक्र उन पर नहीं छोड़ा। केवल इतना ही कहा- ‘खड़ा रह, खड़ा रह’ इन्द्र के हाथ में वज्र नहीं था। गरुड़ ने उनके वाहन को क्षत-विक्षत कर दिया था। वे लज्जित और भयभीत होकर भागने लगे। उन्हें इस दशा में देखकर सत्यभामा हंसने लगीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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