गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 22
अर्जुन सहित प्रद्युम्न का कालयवन-पुत्र चण्ड को जीतकर भारतवर्ष के बाहर पूर्वोत्तर दिशा की ओर प्रस्थान श्रीकृष्ण और बलराम साक्षात परिपूर्णतम श्रीहरि हैं, असंख्य ब्रह्माण्डों के पालक हैं। भगवद्भक्त युधिष्ठिर ने उन दोनों भाइयों का पूर्णतर समादर किया। उन्होंने यदुकुल के मुख्य वीर प्रद्युम्न आदि को सैनिकों सहित दिग्विजय के लिये विधिपूर्वक भेजा और सारी पृथ्वी को जीतने के लिये आज्ञा दी। फिर वे दोनों भक्तवत्सल सर्वेश्वर बन्धु भाइयों सहित धर्मराज युधिष्ठिर से मिलकर द्वारका को चले गये। राजन् ! गौरे और श्याम वर्ण वाले दोनों भाई, बलराम और श्रीकृष्ण सबके मन को हर लेने वाले हैं। नरेश्वर ! इस प्रकार मैंने तुमसे श्रीकृष्ण का चरित्र कहा। यह मनुष्यों को चारों पदार्थ देने वाला हैं। अब तुम और क्या सुनना चाहते हो ? । बहुलाश्व ने पूछा- मुने ! बलराम सहित पुरुषोतम श्रीकृष्ण जब कुशस्थली को चले गये, तब साक्षात भगवान् प्रद्युम्न हरि ने क्या किया ? उनका अद्भुत चरित्र श्रवण करने योग्य तथा मनोहर है। जो जीवन्मुक्त ज्ञानी भक्त हैं, उनके लिये भी भगवच्चरित्र सदा श्रवणीय है, फिर जिज्ञासु भक्तों के लिये तो कहना ही क्या। भगवान का चरित्र अर्थार्थी भक्तों को सदा अर्थ देने वाला और आर्त्त भक्तों की पीड़ा को शान्त करने वाला है। इतना ही नहीं, स्थावर आदि चार प्रकार के जो जीव समुदाय हैं, उन सबके पापों का वह नाश करने वाला है। दिग्विजय के इच्छुक श्रीहरि कुमार प्रद्युम्न किस प्रकार सम्पूर्ण दिशाओं पर विजय प्राप्त करके पुन: सेना सहित द्वारका में लौटे, यह सारा वृतान्त आप मुझे ठीक-ठीक बतलाइये। देवर्षें ! आप ब्रह्माजी के पुत्र और साक्षात सर्वदर्शी भगवान हैं, भगवान श्रीकृष्ण के मन हैं; अत: पहले श्रीहरि के मनस्वरूप आपको मेरा प्रणाम है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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