गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 8
चाणूर-मुष्टिक आदि मल्लों का तथा कंस और उसके भाइयों का वध श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! नन्दराज का चित्त करूणा से द्रवित हो रहा था। उनकी ओर ध्यान देकर वनिताओं मनोरथ को याद करके श्रीहरि शत्रुओं को मार डालने का संकल्प मन में लेकर बलपूर्वक युद्ध आरम्भ किया। चाणूर को भुजदण्डों से उठाकर श्रीकृष्ण ने बलपूर्वक अकस्मात आकाश में उसी प्रकार फेंक दिया, जैसे हवा ने उखडे़ हुए कमल को सहसा उड़ा दिया हो। आकाश से नीचे मुँह किये वह पृथ्वी पर इतने वेग से गिरा, मानों कोई तारा टूट पड़ा हो। फिर उठकर चाणूर ने श्रीकृष्ण को जोर से एक मुक्का मारा। उसके मुक्के की मार से परात्पर भगवान श्रीकृष्ण विचलित नहीं हुए। उन्होंने तत्काल चाणूर को उठाकर पृथ्वी पर पटक दिया। चाणूर के दाँत टूट गये। वह मदोन्मत मल्ल क्रोध से तमतमा उठा। मैथिल ! उसने श्रीकृष्ण की छाती पर दोनों हाथों से मुक्के मारे। नरेश्वर ! तब दोनों हाथो से उसके दोनों हाथ पकड़कर साक्षात भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के आगे उसे घुमाना आरम्भ किया और सबके देखते-देखते पृथ्वी पर उसी प्रकार दे मारा, जैसे किसी बालक ने कमण्डलु पटक दिया हो। श्रीकृष्ण के इस प्रहार से चाणूर मल्लका मस्तक फट गया। राजन् ! वह रक्त वमन करता हुआ तत्काल मर गया। इसी प्रकार महाबली बलदेव ने रणदुर्गम मल्ल मुष्टि के पैर को मुट्ठी से पकड़कर आकाश में घुमाया और जैसे गरूड़ सर्प को पटक दे, उसी प्रकार उसे पृथ्वी पर दे मारा। फिर तो मुष्टिक मुँह से खून उगलता हुआ काल के गाल में चला गया। तत्पश्चात् कूट को सामने आया देख महाबली बलदेव ने एक ही मुक्के से उसी प्रकार मार गिराया, जैसे देवराज इन्द्र ने वज्र से किसी पर्वत को धराशायी कर दिया हो। राजन्! जैसे गरूड़ अपनी तीखी चोंच से नाग को घायल कर देता है, उसी प्रकार सामने आये हुए शल को नन्दनन्द ने लात से मार गिराया। फिर तोशल को पकड़कर श्रीकृष्ण ने उसे बीच से ही चीर डाला और जैसे हाथी किसी पेड़ की डाली को तोड़ फेंके, उसी प्रकार उसके कंस मंच के सामने फेंक दिया। ये सब मल्ल अखाडे़ में गिराये जाते ही मौत के मुख में चले गये और उनके शरीर से निकली हुई ज्योतियाँ सत्पुरुषों के देखते-देखते भगवान वैकुण्ठ (श्रीकृष्ण) में समा गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |