गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 17
श्रीकृष्ण को स्मरण करके श्रीराधा तथा गोपियों के करूण उद्गार श्रीनारद जी कहते हैं– राजन् ! श्रीकृष्ण का यह संदेश सुनकर प्रसन्न हुई गोपांग्नाएँ आँसू बहाती हुई गदगद कण्ठ से उद्धव से बोलीं। गोलोकवासिनी गोपियों ने कहा- उद्धव ! पहले के प्रियजनों को त्यागकर श्रीकृष्ण परदेश चले गये, उस पर भी वहाँ से उन्होंने योग लिख भेजा है। अहो ! निर्मोहीपन का बल तो देखो। द्वारपालिका गोपिकाएँ बोलीं- सखियों ! देखो, चन्द्रमा की चकोर पर, सूर्य की कमल पर, कमल की भ्रमर पर तथा मेघ की चातक पर जैसे कभी प्रीति नहीं होती, उसी प्रकार श्याम सुन्दर का हमलोगों पर प्रेम नहीं है। श्रृंगार धारण कराने वाली गोपियों ने कहा- सखियों ! चकोर चन्द्रमा का मित्र है, पंरतु उसके भाग्य में सदा आग की चिनगारियाँ चबाना ही बदा है। विधाता ने जिसके भाग्य जो कुछ लिख दिया है, कभी कम नहीं होता। शय्योपकारिका गोपियाँ बोलीं- वधिक भी मृगों को बाण मारकर तुरंत आतुर हो उनकी सुध लेता है, किंतु कटाक्षों से अपने प्रियजनों को घायल करके कोई निर्मोही उनका स्मरण तक न करे- यह कैसा आश्चर्य है ? पार्षदा गोपियों ने कहा- विरहजनित दु:ख को कोई विरही ही जानता है, दूसरा कोई भी कभी उस दु:ख को नहीं समझ सकता- जैसे जिसके अंगों में काँटा गड़ा है, उसकी पीड़ा को वही जानता है, जिसके पहले कभी काँटा गड़ चुका है, जिसके शरीर में कभी काँटा गड़ा ही नहीं, वह उसके दर्द को क्या जानेगा ? वृन्दावन पालिका गोपियाँ बोलीं- निष्काम प्रेम के सुख को निष्काम प्रेमी ही जानता है। जो किसी कारण या कामनाओं को लेकर प्रेम करता है, वह निष्काम प्रेम के सुख को क्या जानेगा ? क्या कभी कर्मेन्द्रियाँ रस का अनुभव कर सकती हैं। गोवर्धन-वासिनी गोपियों ने कहा- पुरवनिताओं से प्रेम करने वाला अब सैरन्ध्री (कुब्जा) का नायक बन बैठा है। उसे पर्वत एवं वन में रहने वाली स्त्रियों से क्या लेना है। इस विषय में अधिक कहना व्यर्थ है। कुंजविधायिका गोपियाँ बोलीं- हाय ! मत वाले भ्रमरों के गुंजारव से व्याप्त माधवी कुंज-पुंज में से जिनको हम सदा अपनी आँखों में बसाये रखती थी, उनकी आज यह कथा सुनी जाती है। निकुंजवासिनी गोपियों ने कहा- वृन्दावन में मत वाले भ्रमरों के समुदाय से युक्त यमुनातटवर्ती कदम्ब-कुंज में धीरे-धीरे बलराम, गवाल-बाल और गोधन के साथ विचरते हुए नन्दनन्दन का हम भजन करती हैं । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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