गर्ग संहिता
गिरिराजखण्ड : अध्याय 7
गिरिराज गोवर्धन सम्बन्धी तीर्थों का वर्णन बहुलाश्व ने पूछा– महायोगिन ! आप साक्षात दिव्य दृष्टि सम्पन्न है, अत: यह बताइये कि महात्मा गिरिराज के आस-पास अथवा उनके ऊपर कितने मुख्य तीर्थ हैं। श्रीनारद बोले- राजन ! समूचा गोवर्धन पर्वत ही सब तीर्थों से श्रेष्ठ माना जाता है। वृन्दावन साक्षात गोलोक है और गिरिराज को उसका मुकुट बताकर सम्मानित किया गया है। वह पर्वत गोपों, गोपियों तथा गौओं का रक्षक एवं महान कृष्णप्रिय है। जो साक्षात पूर्णब्रह्मा का छत्र बन गया, उससे श्रेष्ठ तीर्थ दूसरा कौन है। भुवनेश्वर एवं साक्षात परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण ने, जो असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति, गोलोक के स्वामी तथा परात्पर पुरुष हैं, अपने समस्त जनों के साथ इन्द्र याग को धता बताकर जिसका पूजन आरम्भ किया, उस गिरिराज से अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा। मैथिल ! जिस पर्वत पर स्थित हो भगवान श्रीकृष्ण सदा ग्वाल-बालों के साथ क्रीड़ा करते हैं, उसकी महिमा का वर्णन करने में तो चतुर्मुख ब्रह्माजी भी समर्थ नहीं हैं। जहाँ बड़े-बड़े पापों की राशि का नाश करने वाली मानसी गंगा विद्यमान हैं, विशद गोविन्दकुण्ड तथा शुभ्र चन्द्रसरोवर शोभा पाते हैं, जहाँ राधाकुण्ड, कृष्णकुण्ड, ललितिकुण्ड, गोपालकुण्ड तथा कुसुमसरोवर सुशोभित हैं, उस गोवर्धन की महिमा का कौन वर्णन कर सकता है। श्रीकृष्ण के मुकुट का स्पर्श पाकर जहाँ की शिला का दर्शन करने मात्र से मनुष्य देवशिरोमणि हो जाता है। जिस शिला पर श्रीकृष्ण चित्र अंकित किये हैं, वह चित्रित और पवित्र 'चित्रशिला' नाम की शिला आज भी गिरिराज के शिखर पर दृष्टिगोचर होती है। बालकों के साथ क्रीडा़ की थी, उसे 'कन्दुकक्षेत्र' कहते हैं। वहाँ 'शक्रपद' ओर 'ब्रह्मपद' नामक तीर्थ हैं, जिनका दर्शन और और जिन्हें प्रणाम करके मनुष्य इन्द्रलोक और ब्रह्मलोक में जाता है। जो वहाँ की धूल में लोटता है, वह साक्षात विष्णु पद को प्राप्त होता है। जहाँ माधव ने गोपों की पगड़ियाँ चुरायी थीं, वह महापापहारी तीर्थ उस पर्वतपर 'ओष्णीव' नाम से प्रसिद्ध है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |