गर्ग संहिता
गिरिराजखण्ड : अध्याय 6
नन्द जी बोले – हाय ! पहले तो मेरे घर में जिस रत्न राशि के समान दूसरी कोई रत्न राशि थी ही नहीं, उसमें भी अब सौ की कमी हो गयी। अहो ! चारों ओर से भाई-बन्धुओं के बीच मुझ पर बड़ा भारी कलंक पोता जाएगा। अथवा यदि श्रीकृष्ण या बलराम ने खेलने के लिये उसमें से कुछ मोती लिये हों तो अब दीनचित्त होकर मैं उन्हीं दोनों बालकों से पूछूंगा । श्रीनारदजी कहते हैं – राजन ! इस प्रकार विचारकर नन्द ने भी श्रीकृष्ण से उन मोतियों के विषय में आदरपूर्वक पूछा। तब जोर से हंसते हुए गोवर्धनधारी भगवान नन्द से बोले । श्रीभगवान कहा – बाबा ! हम सारे गोप किसान हैं, जो खेतों में सब प्रकार के बीज बोया करते हैं, अत: हमने खेत में मोती के बीज बिखेर दिये हैं । श्रीनारदजी कहते हैं – राजन ! बेटे के मुंह से यह बात सुनकर व्रजेश्वर नन्द ने उस डाँट बतायी और उन सबको चुन-बीनकर लाने के लिये उसके साथ खेतों में गये। वहाँ मुक्ताफल के सैकड़ों सुन्दर वृक्ष दिखायी देने लगे, जो हरे-हरे पल्लवों से सुशोभित और विशालयकाय थे। नरेश्र ! जैसे आकाश में झुंड के झुंड तारे शोभा पाते हैं, उसी प्रकार उन वृक्षों में कोटि-कोटि मुक्ताफल के गुच्छे समूह के समूह लटके हुए सुशोभित हो रहे थे। तब हर्ष से भरे हुए व्रजेश्वर नन्दराज ने श्रीकृष्ण को परमेश्वर जानकर पहले के समान ही मोटे-मोटे दिव्य मुक्ताफल उन वृक्षों से तोड़ लिये और उनके एक कोटि भार गाडि़यों पर लदवाकर उन वर-वरणकर्ताओं को दे दिये। नरेश्वर ! वह सब लेकर वे वरदर्शी लोग वृषभानुवर के पास गये ओर सबके सुनते हुए नन्दराज के अनुपम वैभव का वर्णन करने लगे । उस समय सब गोप बड़े विस्मित हुए। नन्द-नन्दन को साक्षात श्रीहरि जानकर समस्त व्रजवासियों का संशय दूर हो गया और उन्होने वृषभानुवर को प्रणाम किया। मिथिलेश्वर ! उसी दिन से व्रज के सब लोगों ने यह जान लिया कि श्रीराधा श्रीहरि की प्रियतमा हैं और श्रीहरि श्रीराधा के प्राणवल्लभ हैं। मिथिलापते ! जहाँ नन्दनन्दन श्रीहरि ने मोती बिखेरे थे, वहाँ ‘मुक्ता-सरोवर’ प्रकट हो गया, जो तीर्थों का राजा है। जो वहाँ एक मोती का भी दान करता है, वह लाख मोतियों के दान का फल पाता है, इसमें संशय नहीं है। राजन ! इस प्रकार मैंने तुमसे गिरिराज-महोत्सव का वर्णन किया, जो मनुष्यों के लिये भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला है। अब तुम और क्या सुनना चाहते हो ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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