गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 16
मिथिला के राजा धृति द्वारा ब्रह्मचारी के रूप में पधारे हुए प्रद्युम्न का पूजन, उन दोनों का शुभ संवाद; प्रद्युम्न का राजा को प्रत्यक्ष दर्शन दे, उनसे पूजित हो शिविर में जाना श्रीनारदजी कहते हैं- राजन! वहाँ से विजय दुन्दुभि बजवाते हुए यदुनन्दन प्रद्युम्न तुम्हारे सुख सम्पन्न मिथिला देश में आये। कलश-शाभित अत्यन्त ऊँचे स्वर्णमय सौधशिखरों से युक्त मिथिलापुरी को दूर से देखकर प्रद्युम्न ने उद्धव से पूछा। प्रद्युम्न बोले- मन्त्रिवर ! इस समय वह किसकी राजधानी मेरी दृष्टि में आ रही है, जो बहुसंख्यक महलों से भोगवती पुरी की भाँति शोभा पाती है ? । उद्धव ने कहा- मानद ! यह राजा जनक की पुरी मिथिला है। इस समय यहाँ मिथलानरेश महाभागवत विद्वान धृति रहते है। वे समस्त धर्मात्माओं में श्रेष्ठ हैं। श्रीकृष्ण उनके इष्टदेव हैं और वे स्वयं भी श्रीहरि को बहुत प्रिय हैं। उनके पुत्र का नाम बहुलाश्व है, जो बचपन से ही भगवान ही भक्ति करने वाला है। उसे दर्शन देने के लिये साक्षात भगवान श्रीकृष्ण यहाँ पधारेंगे। राजकुमार बहुलाश्व तथा ब्राह्मण श्रुतदेव को द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण बहुत याद किया करते हैं। प्रभो ! इन्हें देवेन्द्र भी नहीं जीत सकते, फिर मनुष्यों की तो बात ही क्या; क्योंकि धृति ने अपनी परा भक्ति से श्रीकृष्ण को वश में कर लिया है। श्री नारद जी कहते हैं- राजन! यह सुनकर भगवान श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न उद्धवजी को अपना शिष्य बनाकर उनके साथ राजा धृति का दर्शन करने के परीक्षा करने के लिये ही मिथिलापुरी को देखा। वहाँ के सभी वीर कवच और शस्त्र धारण करके माला ओर तिलक से सुशोभित थे। वे सब-के-सब माला द्वारा श्रीकृष्ण नामक जप करते थे। मिथिला के लोगों के द्वार-द्वार पर श्री हरि के नाम लिखे थे और श्रीकृष्ण के सुन्दर-सुन्दर चित्र अंकित थे। वहाँ घरों की प्रत्येक दीवार पर गदा, पद्म, दसों अवतार के चित्र और शंक, चक्र अंकित थे। घर-घर के आंगन में तुलसी के मन्दिर दिखायी देते थे ।इस तरह मिथला के महलों को देखते हुए उन्होंने वहाँ के लोगों पर भी दृष्टिपात किया, जो सब-के-सब माला तिलकधारी भगवदभक्त थे। उन्होंने केसर अथवा कुमकुम के बारह-बारह तिलक लगा रखे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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