गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 48
अश्व का हस्तिनापुर में जाना, उसके भालपत्र को पढ़कर दुर्योधन आदि का रोषपूर्वक अश्व को पकड़ लेना तथा यादव सैनिकों का कौरवों को घायल करना श्रीगर्गजी कहते हैं – राजन् ! तदनंतर यमुना नदी को पार करके वह अश्व आस पास के देशों का निरीक्षण करता हुआ कुरुदेश की राजधानी में गया, जहाँ बलवान विचित्र वीर्यकुमार चक्रवर्ती राजा धृतराष्ट्र राज्य करते थे। वहाँ उस अश्व ने अनेकानेक उपवनों, तड़ागों और सरोवरों से युक्त सुंदर कौरव नगर को देखा । नरेश्वर ! वह नगर दुर्ग से तथा गंगारूपिणी खाई से घिरा हुआ था। वहाँ सोने–चांदी के महल थे और बड़े–बड़े शूरवीर वहाँ निवास करते थे। राजन् ! उस कौरव नगर से वनवासी मृगों का शिकार करने के लिए सुयोधन निकला। वह वीरजनों से युक्त हो रथ पर बैठा था। उसने उस यज्ञ संबंधी घोड़े को भाल पत्र सहित देखा। महाराज ! दुर्योधन बड़ा मानी था। घोड़े को देखकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने रथ से उतरकर अनायास ही घोड़े को पकड़ लिया। कर्ण, भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, भूरि और दु:शासन आदि के साथ उसने हर्षित होकर उसका भालपत्र पढ़ा। उसमें लिखा था– चंद्रवंश अंतर्गत यादवकुल में राजा उग्रसेन विराजते हैं। इंद्र आदि देवता भी जिनकी आज्ञा के पालक हैं, भक्त परिपालक भगवान श्रीकृष्ण उनके सहायक हैं। वे उन्हीं की भक्ति से आकृष्ट हो द्वारकापुरी में निवास करते हैं। उन्हीं की आज्ञा से राजाधिराज चक्रवर्ती उग्रेसन हठपूर्वक अपने यश के विस्तार के लिए अश्वमेध यज्ञ करते हैं। उन्होंने यह श्रेष्ठ और शुभ लक्षणों से संपन्न घोड़ा छोड़ा है। उस घोड़े के रक्षक हैं श्रीकृष्ण पौत्र अनिरुद्ध, जो वृक दैत्य का वध करने वाले हैं। हाथी, घोड़े, रथ और पैदल वीरों की अनेक चतुरंगिणी सेनाओं के साथ अनिरुद्ध अश्व की रक्षा में चल रहे हैं। जो राजा इस पृथ्वी पर राज्य करते हैं और अपने को शूरवीर मानते हैं, वे भाल पत्र से शोभित इस यज्ञ संबंधी अश्व को बलपूर्वक ग्रहण करें। धर्मात्मा अनिरुद्ध राजाओं द्वारा पकड़े गए उस अश्व को अपने बाहुबल और पराक्रम से अनायास हठपूर्वक छुड़ा लेंगे। जो घोड़े को न पकड़ सकें, वे धनुर्धर अनिरुद्ध के चरणों में नतमस्तक होकर चले जाएं । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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