गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 12
श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव की धूम; गोप-गोपियों का उपायन लेकर आना; नन्द और यशोदा-रोहिणी द्वारा सब का यथावत सत्कार; ब्राह्मण देवताओं का भी श्रीकृष्ण दर्शन के लिये आगमन श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! तदनंतर गोष्ठ में विद्यामान नन्दजी ने अपने घर में पुत्रोत्सव होने का समाचार सुनकर प्रात:काल ब्राह्मणों को बुलवाया और स्वस्तिवाचनपूर्वक मंगल कार्य कराया। विधिपूर्वक जातकर्म संस्कार सम्पन्न करके महामनस्वी नन्दराज ने ब्राह्मणों को आनन्दपूर्वक दक्षिणा देने के साथ ही एक लाख गौएँ दान की। एक कोस लम्बी भूमि में सत्प-धान्यों के पर्वत खड़े किये गये। उनके शिखर रत्नों और सुवर्णों से सज्जित किये गये। उनके साथ सरस एवं स्निग्ध पदार्थ भी थे। वे सब पर्वत नन्द जी ने विनीत भाव से ब्राह्मणों को दिये। मृदंग, वीणा, शंख और दुन्दुभि आदि बाजे बारम्बार बजाये जाने लगे। नन्द द्वार पर गायक मंगल-गीत गाने लगे। वारांगनाएं नृत्य करने लगीं। पताकाओं, सोने के कलशों, चँदोवों, सुन्दर बन्दनवारों तथा अनेक रंग के चित्रों से नन्द-मन्दिर उद्भासित होने लगा। सड़कें, गलियाँ, द्वार-देहलियाँ, दीवारें, आँगन और वेदियाँ (चबूतरे) इन पर सुगन्धित जल का छिड़काव करके सब ओर से वस्त्रों और झंड़ियों द्वारा सजावट कर दी गयी थी, जिससे ये सब चित्र मण्डसप या चित्रशाला के समान शोभा पा रहे थे। गौओं के सींगों में सोना मढ़ दिया गया था। उनके गले में सुवर्ण की माला पहना दी गयी थी। उनके गले में घंटी और पैरों में मंजीर की झंकार होती थी। उनकी पीठ पर कुछ-कुछ लाल रंग की झूलें ओढ़ायी गयी थीं। इस प्रकार समस्त गौओं का श्रृंगार किया गया था। उनकी पूँछें पीले रंग में रँग दी गयी थी। उनके साथ बछड़े भी थे, उनके अंगों पर तरूणी स्त्रियों के हाथों की छाप लगी थी। हल्दी, कुंकुम तथा विचित्र धातुओं से वे चित्रित की गयी थीं। मोरपंख और पुष्पों से अलंकृत तथा सुगन्धित जल से अभिषित धर्म धुरन्धर मनोहर वृषभ श्रीनन्दराय जी के द्वार पर इधर-उधर सुशोभित थे। गौओं के सफेद बछड़े सोने की मालाओं और मोतियों के हारों से विभूषित हो, इधर-उधर उछलते-कूदते फिर रहे थे। उनके पैरों में भी मंजीर बँधे थे। नन्दराय जी के यहाँ पुत्रोत्सव का समाचार सुनकर वृषभानुवर रानी कलावती (कीर्तिदा) के साथ हाथी पर चढ़कर नन्द मन्दिर में आये। व्रज में जो नौ नन्द, नौ उपनन्द तथा छ: वृषाभानु थे, वे सब भी नाना प्रकार की भेंट सामग्री के साथ वहाँ आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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