गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 15
यज्ञतीर्थ, कपिटंकतीर्थ, नृगकूप, गोपीभूमि तथा गोपीचन्दन की महिमा; द्वारका की मिट्टी के स्पर्श से एक महान पापी का उद्धार श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! उस पर्वत पर पूर्वकाल में राजा रैवत ने यज्ञतीर्थ का निर्माण किया, जहाँ एक यज्ञ करके मनुष्य कोटियज्ञों का फल पाता है वहीं ‘कपिटंक’ नामक तीर्थ है, जो एक कपि के मार गिराये जाने से प्रकट हुआ था। राजन् ! रैवतक गिरि पर वह तीर्थ सब पापों का नाश करने वाला है। भौमासुर का सखा एक द्विविद नामक वानर था, जो बड़ा ही दुष्ट था। उसे बलरामजी ने वज्र के समान चोट करने वाले मुक्के से जहाँ मारा था, वही स्थान ‘कपिटंक तीर्थ’ है। वही वानर सत्पुरुषों की अवहेलना करने वाला था, तो भी वहाँ मारे जाने से तत्काल मुक्त हो गया। नरेश्वर ! उस तीर्थ में स्नान करने के लिये सदा देवता लोग आया करते हैं। ‘कलविंग तीर्थ’ की यात्रा करने पर कोटि गोदान का फल प्राप्त होता है। इससे दूना पुण्य शुभ दण्डकारण्य की यात्रा करने पर मिलता है। उससे भी चौगुना पुण्य सैन्धव नामक विशाल वन की यात्रा करने पर सुलभ होता है। अपेक्षा पांच गुना अधिक पुण्य जम्बूमार्ग की यात्रा करने से मनुष्य को मिल जाता है। पुष्कर तीर्थ के वन में उसे भी दस गुना पुण्य प्राप्त होता है। उससे दस गुना पुण्य ’उत्पलावर्त तीर्थ’ की यात्रा से सुलभ होता है। उसकी अपेक्षा भी दस गुना पुण्य ‘नैमिषारण्य तीर्थ’ में बताया गया है विदेहराज ! नैमिषारण्य से भी सौगुना पुण्य ’कपिटंक तीर्थ’ में स्नान करने से प्राप्त होता है। द्वारका में एक ‘नृगकूप’ है, जो तीर्थों में सर्वोंतम तीर्थ है। उसके दर्शनमात्र से ब्रह्महत्या का पाप छूट जाता है। राजा नृग ने अनजान में एक ब्राह्मण की गाय को दूसरे ब्राह्मण के हाथ में दे दिया था। उसी पाप से उन्हें गिरगिट का शरीर धारण करके कूप में रहना पड़ा। दानियों में सर्वश्रेष्ठ राजा नृग भी एक छोटे-से पाप के कारण अन्धकूप में गिरे और चार युगों तक उसी में रहे। फिर सत्पुरुषों के देखते-देखते भगवान श्रीकृष्ण उनका उद्धार किया। महीपते ! उसी दिन से ‘नृगकूप’ तीर्थ स्वरूप हो गया। कार्तिक की पूर्णिमा को उस कूप के जल से स्नान करना चाहिये। ऐसा करने वाला मनुष्य कोटिजन्मों के किये हुए पाप से छुटकारा पा जात है, इसमें संशय नहीं है। वह निस्संदेह कोटि गोदान के पुण्यफल का भागी होता है। राजन् ! अब ‘गोपीभूमि’ का माहात्म्य सुनो, जो पापहारी उत्तमक तीर्थ है। उसके श्रवणमात्र से कर्मबन्धन से छुटकारा मिल जाता है। जहाँ गोपयों ने निवास किया था, उस निवास के कारण ही वह स्थान ‘गोपीभूमि’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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