गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 27
प्रद्युम्न द्वारा गरुडास्त्र का प्रयोग होने पर गीधों के आक्रमण से यादव-सेना की रक्षा; दशार्ण देश पर विजय तथा दशार्ण मोचन तीर्थ में स्न्नान नरेश्वर ! वे सब-के-सब दीर्घायु और भूखे थे। उन्होंने यादव सैनिकों, हाथियों और घोड़ों को भी अपना ग्रास बनाना आरम्भ किया। आकाश पक्षियों से व्याप्त हो गया। उनकी पांखों की हवा से आंधी-सी उठने लगी। सेना में अन्धकार छा गया और महान हाहाकार होने लगा। तब महाबाहु श्रीकृष्ण कुमार प्रद्युम्न ने गरुड़ास्त्र का संधान किया। उस अस्त्र से साक्षात विनतानन्दन पक्षिराज गरुड़ प्रकट हो गये। अन्धकार से भरी हुई उस सेना में पहुँचकर पक्षिराज ने अपनी चोंच और चमकीले पंखों की मार से कितने ही गीधों, कुलिग्ड़ों और गरुड़ों को धराशायी कर दिया। उन सबका घमंड चूर हो गया, पंख कट गये और वे सब पक्षी क्षत विक्षत हो गरुड़ के भय से घबराकर दसों दिशाओं में भाग गये । तदनन्तर महाबाहु श्रीकृष्ण कुमार दशार्ण जनपद में गये। दशार्ण देश के राजा शुभांग सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। युद्ध में उनका बल दस हजार हाथियों के समान हो जाता था। वे निष्कौशाम्बपुरी के अधिपति थे। वेदव्यास के मुख से प्रद्युम्न का प्रचण्ड पौरुष सुनकर वे दशार्णा नदी पार करके आ गये थे। शुभांग ने हाथ जोड़कर किरीट सहित अपना मस्तक झुका दिया और महात्मा प्रद्युम्न को उत्तम रत्नों की भेंट दी। सर्वत्र व्यापक और सर्वदर्शी साक्षात भगवान प्रद्युम्न ने शुभांग से लोक संग्रह की इच्छा से इस प्रकार पूछा । प्रद्युम्न ने कहा- निष्कौशाम्बीपुरी के अधीश्वर राजन् ! यह देश 'दशार्ण' क्यों कहलाता है किसके नाम पर इसका ऐसा नाम हुआ है, यह मुझे बताइये । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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