गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 32
भद्राश्व वर्ष में भद्रश्रवा के द्वारा प्रद्युम्न का पूजन तथा स्तवन; यादव-सेना की चन्द्रावती पुरी पर चढ़ाई; श्री कृष्ण कुमार वृक के द्वारा हिरण्याक्ष-पुत्र हृष्ट का वध श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! तदनन्तर महाबाहु श्रीकृष्ण कुमार प्रद्युम्न केतुमाल वर्ष पर विजय पाकर, धनुष धारण किये, योग समृद्धियों से युक्त ‘भद्राश्व वर्ष’ में गये, जिसकी सीमा का पर्वत साक्षात ‘गन्धमादन’ बड़ी शोभा पाता है, जहाँ से पापनाशिनी गंगा ‘सीता’ नाम से प्रवाहित होती हैं। वहाँ सर्व पापनाशक ‘वेद क्षैत्र’ नामक महातीर्थ है, जहाँ महाबाहु हयग्रीव हरि का निवास है। धर्म पुत्र भद्रश्रवा उनकी सेवा करते हैं। सीता-गंगा के पुलिन पर महात्मा प्रद्युम्न की सेना के शिविर पड़ गये, जो सुनहरे वस्त्रों के कारण बड़े मनोहर जान पड़ते थे। भद्राश्व देश के अधिपति धर्मपुत्र महाबली महात्मा भद्रश्रवा ने भक्ति भाव से परिक्रमा करके श्रीकृष्ण कुमार को प्रणाम किया और उन्हें भेंट अर्पित की। फिर वे उनसे बोले। भद्रश्रवा ने कहा- प्रभो ! आप साक्षात पूर्ण परिपूर्णतम भगवान हैं। साधु पुरुषों की रक्षा के निमित्त ही दिग्विजय के लिये निकले हैं। भगवन् ! आप ने पूर्व काल में शम्बर नामक दैत्य को परास्त किया था। उसका छोटा भाई उत्कच बड़ा दुष्ट था, जो गोकुल में छकड़े पर जा बैठा था। वह भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के द्वारा मारा गया; परंतु उसका बड़ा भाई महादुष्ट बलवान शकुनि अभी जीवित है। देव ! वह आप से ही परास्त होने योग्य है, दूसरा कोई कदापि उसे जीत नहीं सकता। प्रद्युम्न ने पूछा- धर्मनन्दन ! दैत्यराज शकुनि किसके वंश में उत्पन्न हुआ हैं, उसका निवास किस नगर में है और उसका बल क्या है- यह बताइये। भद्रश्रवा ने कहा- भगवन् ! कश्यप मुनि के द्वारा दिति के गर्भ से दो आदि दैत्य उत्पन्न हुए, जिसमें बड़े का नाम हिरण्यकशिपु और छोटे का नाम हिरण्याक्ष था। हिरण्याक्ष के भी नौ पुत्र हुए, जिनके नाम इस प्रकार हैं- शकुनि, शम्बर हष्ट, भूत-संतापन, वृक, कालनाभ, महानाभ, हरिश्मश्रु तथा उत्कच। देव कूट से दक्षिण दिशा में जठरगिरि की तराई में चन्द्रावती नामक पुरी है, जो दैत्यों के दुर्ग से सुशोभित है। वहाँ छ: भाइयों से घिरा हुआ शकुनि निवास करता है। वहाँ छ: भाइयों से घिरा हुआ शकुनि निवास करता हैं, तब-तब वह उनके इन्द्र आदि देवता भी उद्विग्न हो उठे हैं। देव ! वह देवद्रोही दैत्यराज आप से ही जीते जाने योग्य है; क्योंकि आपने भक्तों की शान्ति के लिये सम्पूर्ण जगत को जीता है। आप भगवान प्रद्युम्न को नमस्कार है। चतुर्व्यूह रूप आपको प्रणाम है। गौ, ब्राह्मण, देवता, साधु तथा वेदों के प्रतिपालक है। आपको नमस्कार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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