गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 41
शकुनि का घोर युद्ध, सात बार मारे जाने पर भी उसका भूमि के स्पर्श से पुन: जी उठना; अन्त में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युक्तिपूर्वक उसका वध नारदजी कहते हैं- राजन् ! शेष दैत्यों को लेकर नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र धारण किये बलवान वीर शकुनि, दिव्य मनोहर अश्व उच्चै:श्रवा पर आरुढ़ हो, क्रोध से अचेत-सा होकर, धनुष की टंकार करता हुआ भगवान श्रीकृष्ण के भी सम्मुख युद्ध करने के लिये आ गया। रणदुर्मद दैत्य शकुनि तथा उसकी सेना का पुन: आगमन देख समस्त वृष्णिवंशियों ने अपने अपने आयुध उठा लिये। उस समय दैत्यों का यादवों के साथ घोर युद्ध हुआ। वीरों के साथ वीर इस तरह जूझने लगे, जैसे सिंहों के साथ सिंह लड़ रहे हों। राजन् ! मेघ की गर्जना के समान बारंबार कोदण्ड की टंकार करता हुआ शकुनि सबके आगे था। उसने नाराचों द्वारा दुर्दिन उपस्थित कर दिया। बाणों का अन्धकार छा जाने पर शांर्ग धनुष धारण करने वाले भगवान् गरूड़ ध्वज अपने उस धनुष उसी प्रकार सुशोभित हुए, जैसे इन्द्रधनुष से मेघ की शोभा होती है। साक्षात भगवान श्रीकृष्ण ने अपने एक ही बाण से लीलापूर्वक असुर शकुनि के बाण-समूहों को काट डाला। मिथिलेश्वर ! युद्ध में अपने कोदण्ड को कान तक खींचकर शकुनि ने भगवान श्रीकृष्ण के हृदय में दस बाण मारे। तब प्रलय समुद्र के महान आवर्तो के भीषण संघर्ष के समान गम्भीर नाद करने वाली शकुनि के धनुष की प्रत्यंचा को श्रीकृष्ण ने दस बाणों से काट डाला। नरेश्वर ! मायावी दैत्य शकुनि सबके देखते देखते सौ रूप धारण करके श्रीहरि के साथ युद्ध करने लगा। तब साक्षात भगवान श्रीकृष्ण एक सहस्त्र रूप धारण करके उस दैत्य के साथ युद्ध करने लगे, वह अद्भुत-सी बात हुई। बलवान दैत्यराज शकुनि ने मयासुर के बनाये हुए अग्नितुल्य तेजस्वी त्रिशूल को घुमाकर उसे श्रीहरि के ऊपर चला दिया। तब कुपित हुए परिपूर्णतम महाबाहु श्रीहरि ने उस त्रिशूल को वैसे ही काट दिया, जैसे तीखी चोंच वाला गरूड़ किसी सर्प को टूक-टूक कर डाले। तदनन्तर क्रोध से भरे हुए महाबाहु श्रीहरि ने शकुनि के मस्तक पर अपनी गदा चलायी तथा उस वज्रतुल्य गदा की चोट से उस दैत्य को घोड़े से नीचे गिरा दिया। गदा की चोट से पीडित हुआ दैत्य क्षणभर के लिये मूर्च्छित हो गया। फिर युद्धस्थल में अपनी गदा लेकर वह माधव के साथ युद्ध करने लगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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