गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 8
सुचन्द्र और कलावती के पूर्व-पुण्य का वर्णन, उन दोनों का वृषभानु तथा कीर्ति के रूप में अवतरण श्रीगर्गजी कहते हैं- शौनक ! राजा बहुलाश्व का हृदय भक्तिभाव से परिपूर्ण था। हरिभक्ति में उनकी अविचल निष्ठा थी। उन्होंने इस प्रसंग को सुनकर ज्ञानियों श्रेष्ठ एवं महाविलक्षण स्वभाव वाले देवर्षि नारद जी को प्रणाम किया और पुन: पूछा। राजा बहुलाश्व ने कहा- भगवन ! आपने अपने आनन्दप्रद, नित्य वृद्धिशील, निर्मल यश से मेरे कुल को पृथ्वी पर अत्यंत विशद (उज्ज्वल) बना दिया; क्योंकि श्रीकृष्ण भक्तों के क्षणभर के संग से साधारण जन भी सत्पुरुष महात्मा बन जाता है। इस विषय में अधिक कहने से क्या लाभ। श्रीराधा के साथ भूतल अवतीर्ण हुए साक्षात परिपूर्णतम भगवान ने भूतल पर अवतीर्ण हुए साक्षात परिपूर्णतम भगवान ने व्रज में कौन-सी लीलाएँ कीं- यह मुझे कृपा पूर्वक बताइये। देवर्षे ! ऋषीश्वर ! इस कथामृत द्वारा आप त्रिताप-दु:ख से मेरी रक्षा कीजिये। श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! वह कुल धन्य है, जिसे परात्पर श्रीकृष्ण भक्त राजा निमि ने समस्त सदगुणों से परिपूर्ण बना दिया है और जिसमें तुम- जैसे योगयुक्त एवं भव-बन्धन से मुक्त पुरुष ने जन्म लिया है। तुम्हारे इस कुल के लिये कुछ भी विचित्र नहीं है। अब तुम उन परम पुरुष भगवान श्रीकृष्ण की परम मंगलमयी पवित्र लीला का श्रवण करो। वे भगवान केवल कंस का संहार करने के लिये ही नहीं, अपितु भूतल के संतजनों की रक्षा के लिये अवतीर्ण हुए थे। उन्होंने अपनी तेजोमयी पराशक्ति श्री राधा का वृषभानु की पत्नि कीर्ति रानी के गर्भ में प्रवेश कराया। वे श्री राधा कलिन्दजाकूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मन्दिर में अवतीर्ण हुईं। उस समय भाद्रपद का महीना था। शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि एवं सोम का दिन था। मध्याह्न का समय था और आकाश में बादल छाये हुए थे। देवगण नन्दनवन के भव्य प्रसून लेकर भवन पर बरसा रहे थे। उस समय श्री राधिका जी के अवतार धारण करने से नदियों का जल स्वच्छ हो गया। सम्पूर्ण दिशाएँ प्रसन्न-निर्मल हो उठीं। कमलों की सुगन्ध से व्याप्त शीतल वायु मन्द गति से प्रवाहित हो रही थी। शरत्पूर्णिमा के शत-शत चन्द्रमाओं से भी अधिक अभिराम कन्या को देखकर गोपी कीर्तिदा आनन्द में निमग्न हो गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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