गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 29
यादवों और असुरों का घोर संग्राम तथा ऊर्ध्वकेश एवं अनिरुद्ध का द्वंद्व युद्ध श्रीगर्ग कहते हैं - राजेंद्र ! तदनन्तर उर्ध्व केश आदि चार मंत्री कवच बाँधकर करोड़ों दैत्यों की सेना के साथ युद्ध के लिए नगर से बाहर निकले। नरेश्वर ! वे सब के सब धनुर्धर तथा विद्याधरों के समान शौर्य संपन्न थे। लोहे का कवच बाँध कर खड्ग, शूल, गदा, परिघ, मुद्गर, एकघ्नी, दशघ्नी, शतध्नी, भुशुण्डी, भाले, भिन्दिपाल, चक्र, सायक, शक्ति आदि संपूर्ण अस्त्र–शस्त्रों से सुसज्जित थे। हाथी, घोड़े, रथ, नीलगाय, गाय, भैंस, मृग, ऊंट, गधे, सूअर, भेड़िये, सिंह, सियार, बड़े–बड़े गीध, शंख, चील, मगर और तिमिंगल– इन वाहनों पर चढ़कर वे रण कर्कश दैत्य युद्ध के मैदान में उतरे। उस समय शंख और दुन्दुभियों के नाद से, वीरों की सिंह गर्जना से और शतघ्नियों (तोपों) की आवाज से धरती बार–बार हिलने लगी। असुरों की ऐसी भयंकर सेना देखकर महेंद्र, कुबेर आदि सब देवता भयभीत हो गए। जिन्होंने अनेक बार भूतल पर विजय पाई थी, वे बलवान यादव भी दैत्यों की सेना देखकर मन ही मन विषाद का अनुभव करने लगे। पहले प्रद्युम्न ने राजसूय यज्ञ के अवसर पर चंद्रावती नगरी में जो यादवों के प्रति निति और धैर्य बढ़ाने वाली बात कही थी, वह सब प्रद्युम्न कुमार ने पुन: उनके समक्ष दुहराई। श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन् ! यह सुनकर यादवों ने तुरंत अस्त्र–शस्त्र उठा लिए। उन्होंने जीतेजी जाने और माँगने की अपेक्षा मौत को श्रेष्ठ माना। फिर तो दैत्यों का यादवों के साथ उस पाञ्चजन्य नामक उपद्वीप में घोर युद्ध होने लगा। ठीक उसी तरह जैसे पहले लंका में निशाचरों का वानरों के साथ युद्ध हुआ था। वहाँ युद्ध में रथियों के साथ रथी, पैदलों के साथ पैदल, घोड़ों के घोड़े और हाथियों के साथ हाथी सभी आपस में जूझने लगे। राजन् ! उस महासमर में कितने ही मत वाले हाथियों ने अपने शुण्डदण्ड से रथों को चकनाचूर कर दिया तथा घोड़ों और पैदल वीरों को मार गिराया। घोड़ों और सारथियों सहित रथों को सूंड में लपेटकर वे धरती पर गिरा देते और फिर बलपूर्वक उठा कर आकाश में फेंक देते। राजन् ! कितने ही क्षत–विक्षत गजराज समरांगण से बाहर भाग रहे थे। उन्होंने कितनों को अपनी सुदृढ़ सूँड़ों से विदीर्ण करके दो पैरों से मसल डाला। नृपेश्वर ! वीर सवारों सहित घोड़े दौड़ते हुए रथों को लाँघ जाते और उछलकर हाथियों पर चढ़ जाते थे। वे सिंह की भाँति युद्ध में महावत और हाथी सवार को रौंदते जाते थे। महाबली अश्व उछलते हुए हाथियों की सेना में घुस जाते और उनके सवार खड्ग प्रहार करके बहुत से शत्रुओं को विदीर्ण कर डालते थे। नटों की भाँति कभी तो घोड़ों की पीठ पर नहीं दिखाई देते और कभी दिखाई देते थे। कितने ही वीर खड्गों से घोड़ों के दो टुकड़े कर डालते और कितने ही हाथियों के दाँत पकड़कर उनके कुंभ स्थलों पर चढ़ जाते थे। कितने ही घुड़सवार योद्धा तलवारों को बड़े वेग से चलाकर शत्रुसेना को विदीर्ण करते हुए बाहर निकल जाते थे, जैसे हवा कमलों के वन में समाकर अनायास ही निकल जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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