गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 10
यशोदाजी की चिंता; नन्द द्वारा आश्वासन तथा ब्राह्मणों को विविध प्रकार के दान देना; श्री बलराम तथा श्रीकृष्ण का गोचारण नारद जी कहते हैं- अष्टावक्र के शाप से सर्प होकर अघासुर उन्हीं के वरदान-बल से उस परम मोक्ष को प्राप्त हुआ, जो देवताओं के लिये भी दुर्लभ है। वत्सासुर, वकासुर और फिर अघासुर के मुख से श्रीकृष्ण किसी तरह बच गये हैं और कुछ ही दिनों में उनके ऊपर ये सारे संकट आये हैं-यह सुनकर यशोदा जी भय से व्याकुल हो उठीं। उन्होंने कलावती, रोहिणी, बड़े-बूढ़े गोप, वृषभानुवर, व्रजेश्वर नन्दराज, नौ नन्द, नौ उपनन्द तथा प्रजाजनों के स्वामी छ: वृषभानुओं को बुलाकर उन सबके सामने यह बात कही । यशोदा बोलीं- आप सब लोग बतायें- मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ और कैसे मेरा कल्याण हो ? मेरे पुत्र पर तो यहाँ क्षण-क्षण में बहुत-से अरिष्ट आ रहे हैं। पहले महावन छोड़कर हम लोग वृन्दावन में आये और अब इसे भी छोड़कर दूसरे किस निर्भय देश में मैं चली जाऊँ, यह बताने की कृपा करें। मेरा यह बालक स्वभाव से ही चपल है। खेलते-खेलते दूर तक चला जाता है। व्रज के दूसरे बालक भी बड़े चंचल हैं। वे सब मेरी बात मानते ही नहीं। तीखी चोंच वाला बलवान वकासुर पहले मेरे बालक को निगल गया था। उससे छूटा तो इस बेचारे को अघासुर ने समस्त ग्वाल-बालों के साथ अपना ग्रास बना लिया। भगवान की कृपा से किसी तरह उससे भी इसकी रक्षा हुई। इन सबसे पहले वत्सासुर इसकी घात में लगा था, किंतु वह भी दैव के हाथों मारा गया। अब मैं बछड़े चराने के लिये अपने बच्चे को घर से बाहर नहीं जाने दूँगी। श्री नारदजी कहते हैं- इस तरह कहती तथा निरंतर रोती हुई यशोदा की ओर देखकर नन्दजी कुछ कहने को उद्यत हुए। पहले तो धर्म और अर्थ के ज्ञाता तथा धर्मात्माओं में श्रेष्ठ नन्द ने गर्ग जी के वचनों की याद दिलाकर उन्हें धीरज बँधाया, फिर इस प्रकार कहा । नन्द राज बोले- यशोदे ! क्या तुम गर्ग की कही हुई सारी बातें भूल गयीं? ब्राह्मणों की कही हुई बात सदा सत्य होती है, वह कभी असत्य नहीं होती। इसलिये समस्त अरिष्टों का निवारण करने के लिये तुम्हें दान करते रहना चाहिये। दान से बढ़कर कल्याणकारी कृत्य न तो पहले हुआ है और न आगे होगा ही। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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